World Saree Day 2025: दुनिया में आज के दिन विश्व साड़ी दिवस मनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है बल्कि परंपरा और पहचान का प्रतीक है. मंदिरों से लेकर शादियों और रोजमर्रा की जिंदगी तक साड़ी हजारों सालों से अपनी पहचान को खोए बिना बनी हुई है. लेकिन एक आम सवाल आज भी लोगों को हैरान करता है. यह सवाल है की साड़ी सबसे पहले किसने पहनी थी. आइए जानते हैं क्या है इस सवाल का जवाब.

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किसने पहनी थी सबसे पहले साड़ी

दरअसल सिंधु घाटी सभ्यता की महिलाएं साड़ी का शुरुआती रूप पहनने वाली सबसे पहली थीं. मोहनजोदड़ो जैसी जगहों पर मिली मूर्तियों और आकृतियों में महिलाओं को बिना सिले कपड़े में दिखाया गया है. यह कपड़ा कमर के चारों तरफ और कंधों पर लपेटा हुआ है. इससे साड़ी की उत्पत्ति लगभग 2800 से 1800 ईसा पूर्व के आसपास नजर आती है.

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साड़ी शब्द की उत्पत्ति 

साड़ी शब्द संस्कृत शब्द शाटिका से लिया गया है. इसका मतलब होता है कपड़े की एक पट्टी. वक्त के साथ यह शब्द साड़ी में बदल गया. प्राचीन काल में पुरुष और महिलाएं दोनों ही बिना सिले कपड़े पहनते थे. धोती और साड़ी एक ही मूल लपेटने की परंपरा से विकसित हुए हैं. 

वेदों और प्राचीन ग्रंथो में साड़ी 

साड़ी ना सिर्फ आर्कियोलॉजिकली पुरानी है बल्कि धार्मिक ग्रंथो के अनुसार भी काफी प्राचीन है. ऋग्वेद और यजुर्वेद में महिलाओं द्वारा लपेटे हुए कपड़े पहनने का जिक्र है. इन ग्रंथो में उन अनुष्ठानों के बारे में जिक्र किया गया है जहां पर यज्ञ के दौरान पत्नियों को खास लिपटे हुए कपड़े पहनाए जाते थे.

इसी के साथ साड़ी का सबसे मशहूर संदर्भ महाभारत में द्रोपती के चीरहरण में भी मिलता है. भगवान श्री कृष्णा चमत्कारिक रूप से उनकी गरिमा की रक्षा के लिए उनके वस्त्र की लंबाई को बढ़ा देते हैं. कई विद्वानों का ऐसा मानना है कि यह वस्त्र एक साड़ी थी.

पुराने समय में कितनी लंबी होती थी साड़ी 

पुराने समय में साड़ी की कोई लंबाई तय नहीं थी. दरअसल पुराने समय में साड़ी को तीन अलग-अलग बिना सिले टुकड़ों के रूप में पहना जाता था. पहला टुकड़ा होता था अंतरिय, जो नीचे का हिस्सा होता था. दूसरा टुकड़ा होता था उत्तरीय जो कि कंधे पर डालने वाला हिस्सा होता था और तीसरा हिस्सा होता था स्तनपट्ट, जो सीने को ढकने वाली पट्टी होती थी.

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