दुनिया की आर्थिक ताकतें हमेशा अपनी मजबूती और विकास को लेकर चर्चा में रहती हैं, लेकिन एक रिपोर्ट ने ऐसी हकीकत सामने रख दी है, जिसने वैश्विक बाजारों को भी चौंका दिया है. यह सोचकर कोई भी हैरान हो सकता है कि जिन देशों को दुनिया सुपरपावर कहकर पहचानती है, वही देश आज कर्ज के बोझ तले सबसे ज्यादा दबे हुए हैं. रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि कर्ज का यह पहाड़ सिर्फ कमजोर अर्थव्यवस्थाओं पर नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े देशों की नींव पर भी भारी पड़ रहा है. आइए उनके नाम जान लेते हैं. 

Continues below advertisement

सबसे बड़ा कर्जदार देश कौन?

दुनिया की सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था के तौर पर अमेरिका को हमेशा आर्थिक स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अक्टूबर 2025 की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट ने अमेरिका की असल स्थिति का पर्दाफाश कर दिया. आंकड़ों के अनुसार दुनिया के कुल सरकारी कर्ज में अमेरिका अकेले 34.5% हिस्सेदारी रखता है. यह स्थिति इसलिए भी चौंकाती है क्योंकि आमतौर पर माना जाता है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश या श्रीलंका जैसे देश ही सबसे अधिक कर्ज में डूबे होते हैं, जबकि हकीकत बिल्कुल उलट निकली.

Continues below advertisement

अमेरिका की अर्थव्यवस्था भले ही सबसे बड़ी हो, लेकिन लगातार बढ़ते सरकारी खर्च, सैन्य बजट, सामाजिक सुरक्षा योजनाएं और आर्थिक चुनौतियों ने उसका कर्ज ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचा दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2025 में दुनिया का कुल सरकारी कर्ज बढ़कर 110.9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा.

चीन, जापान और भारत भी भारी कर्ज के बोझ तले

इस सूची में दूसरा नाम चीन का है, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. चीन ग्लोबल सरकारी कर्ज में 16.8% हिस्सेदारी रखता है. बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, वैश्विक निवेश और घरेलू आर्थिक चुनौतियों ने चीन के कर्ज को और बड़ा बना दिया है.

जापान इस लिस्ट में तीसरे स्थान पर है, और उसकी स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक मानी जा रही है. जापान पर कुल वैश्विक कर्ज का 8.9% भार है, लेकिन असली चिंता उसके सरकारी कर्ज और GDP के अनुपात को देखकर आती है. जापान का कर्ज उसकी GDP का 229.6% है, यानी अर्थव्यवस्था के आकार से दो गुने से भी अधिक है. 

भारत सातवें स्थान पर है और उसके हिस्से में 3.0% ग्लोबल कर्ज आता है. हालांकि भारत का कर्ज उसकी GDP का 81.4% है, जो अमेरिका (125%) और इटली (136.8%) जैसे देशों से काफी कम है. इसका मतलब यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी अपनी कर्ज क्षमता के अनुरूप खड़ी है और उतनी अस्थिर नहीं जितनी कई विकसित अर्थव्यवस्थाएं दिख रही हैं.

कर्ज आखिर मिलता कहां से है?

देशों को कर्ज कई स्रोतों से मिलता है, जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, दूसरे देश, वैश्विक वित्तीय संस्थान और विदेशी बाजारों में जारी सरकारी बॉन्ड. बढ़ता कर्ज कई बार विकास का आधार बनता है, लेकिन जब यह आय से अधिक हो जाता है, तो वह देश की आर्थिक सेहत के लिए खतरा बन जाता है.

यह भी पढ़ें: ममदानी के न्यूयॉर्क का मेयर बनने पर भारत में सियासत तेज, जानें देश के किन-किन बड़े पदों पर रह चुके मुस्लिम?