जंग के मैदान में अब धमाकों से पहले रोशनी वार कर रही है. सेकेंडों में आसमान से आते खतरे को राख में बदल देने वाली तकनीक दुनिया की सैन्य रणनीति बदल रही है. बिना आवाज, बिना मिसाइल और बेहद कम लागत में दुश्मन को खत्म करने वाले लेजर हथियार आज महाशक्तियों की पहली पसंद बन चुके हैं. इजरायल, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन इस रेस में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन सवाल यही है कि इस हाईटेक हथियारों की दुनिया में भारत कहां खड़ा है?
भविष्य की जंग और लेजर तकनीक
बीते एक दशक में युद्ध की प्रकृति तेजी से बदली है. ड्रोन, यूएवी, क्रूज मिसाइल और स्वार्म अटैक जैसे खतरों ने पारंपरिक एयर डिफेंस सिस्टम को चुनौती दी है. ऐसे में लेजर हथियार एक सटीक, तेज और किफायती समाधान बनकर उभरे हैं. ये हथियार बिजली की रफ्तार से लक्ष्य पर वार करते हैं और गोला-बारूद की जरूरत लगभग खत्म कर देते हैं. यही वजह है कि दुनिया के बड़े सैन्य बजट अब लेजर डिफेंस सिस्टम की ओर शिफ्ट हो रहे हैं.
इजरायल की अदृश्य ढाल
लेजर हथियारों की बात हो और इजरायल का नाम न आए, ऐसा संभव नहीं है. इजरायल का आयरन बीम सिस्टम 100 किलोवाट वर्ग की शक्ति के साथ काम करता है. इसे रॉकेट, मोर्टार शेल, तोप के गोले और कम दूरी के हवाई खतरों को रोकने के लिए डिजाइन किया गया है. आयरन डोम के साथ मिलकर यह सिस्टम इजरायल की एयर डिफेंस क्षमता को और मजबूत बनाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि एक लेजर शॉट की लागत पारंपरिक मिसाइल की तुलना में बेहद कम है.
अमेरिकी नौसेना की समुद्री ताकत
अमेरिका ने अपनी नौसेना के लिए हाई एनर्जी लेजर विद इंटीग्रेटेड ऑप्टिकल-डैजलर एंड सर्विलांस सिस्टम यानी HELIOS विकसित किया है. यह 60 किलोवाट से अधिक क्षमता वाला लेजर हथियार है, जिसे भविष्य में 120 किलोवाट तक अपग्रेड किया जा सकता है. यह सिस्टम युद्धपोतों पर तैनात किया जा रहा है और ड्रोन, छोटी नौकाओं और हवाई खतरों को निष्क्रिय करने में सक्षम है. मॉड्यूलर फाइबर लेजर तकनीक इसे बेहद सटीक बनाती है.
ब्रिटेन का सटीक वार
ब्रिटेन ने ड्रैगनफायर प्रोग्राम के तहत हाई पावर लेजर हथियार विकसित किया है. यह लगभग 50 किलोवाट क्षमता का सिस्टम है, जिसकी हर फायरिंग की लागत बेहद कम बताई जाती है. कई सफल परीक्षणों के बाद इसे 2027 तक ब्रिटिश नेवी में शामिल किए जाने की संभावना है. ड्रैगनफायर खासतौर पर हवाई खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है और इसकी सटीकता इसे बेहद खतरनाक बनाती है.
रूस की रणनीतिक चाल
रूस का पेरेस्वेत लेजर सिस्टम पहली बार 2018 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा सार्वजनिक किया गया था. यह एक मोबाइल लेजर हथियार है, जिसे हवाई सुरक्षा और सैटेलाइट रोधी भूमिका के लिए तैयार किया गया माना जाता है. इसकी पूरी तकनीकी जानकारी सार्वजनिक नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह रूस की रणनीतिक सुरक्षा का अहम हिस्सा है.
LY-1: चीन की रहस्यमयी शक्ति
चीन भी लेजर हथियारों की दौड़ में पीछे नहीं है. उसका LY-1 हाई पावर लेजर सिस्टम विजय दिवस परेड में दिखाया जा चुका है. हालांकि, इसकी क्षमताओं को लेकर आधिकारिक जानकारी बेहद सीमित है. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिस्टम ड्रोन, हेलीकॉप्टर और क्रूज मिसाइल जैसे खतरों से निपटने में सक्षम हो सकता है.
भारत का लेजर मिशन: Mk-II(A) और DURGA
भारत ने भी लेजर हथियारों के क्षेत्र में मजबूत कदम बढ़ाए हैं. साल 2020 में भारत ने 30 किलोवाट क्षमता वाले Mk-II(A) लेजर हथियार का सफल परीक्षण किया था, जो करीब 5 किलोमीटर की दूरी तक ड्रोन और छोटे हवाई खतरों को मार गिराने में सक्षम है. इसके अलावा DURGA परियोजना के तहत 300 किलोवाट क्षमता वाला हाई पावर लेजर सिस्टम विकसित किया जा रहा है, जिसकी रेंज करीब 20 किलोमीटर तक बताई जाती है. यह भारत को भविष्य के युद्ध के लिए तैयार करने की दिशा में बड़ा कदम है.
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