टाइटैनिक जहाज जब बनकर तैयार हुआ था तो ऐसे तमाम दावे किए गए थे कि ये कभी नहीं डूब सकता. जब ये जहाज पहली बार चला था तो इन दावों पर विश्वास करके लगभग 2200 लोग इसमें सवार हो गए थे. हालांकि 14 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक अटलांटिक महासागर में एक हिमशिला से टकराकर डूब गया था. इस हादसे में 1517 लोगों की मौत हुई थी. इस हादसे के बाद टाइटैनिक की लंबे समय तक तलाश होती रही थी. 


जिसके बाद इसके मलबे को 1985 में समुद्र से करीब चार किलोमीटर अंदर तक तलाशा गया था. टाइटैनिक के मलबे को अब देखने के लिए वहां पनडुब्बी के जरिए लोग भारी-भरकम खर्च कर जाते हैें. कुछ समय पहले टाइटैनिक को देखने भेजी गई ओशनगेट कंपनी की पनडुब्बी लापता हो गई थी. इस पनडुब्बी में पांच यात्री सवार थे. दुनियाभर की टीमों द्वारा भी पनडुब्बी में सवाल 5 लोगों को बचाया नहीं जा सका. ओशनगेट कंपनी ने इसकी पुष्टी की थी. लेकिन हर किसी के मन में सवाल ये उठता है कि आखिर टाइटैनिक तक पहुंचना इतना कठिन क्यों हो गया है.


टाइटैनिक तक जाना क्यों है इतना खतरनाक?
अटलांटिक महासागर में जिस जगह पर टाइटैनिक जहाज डूबा था, वहां के आसपास का जल क्षेत्र काफी खतरनाक माना जाता है. जिसकी वजह ये है कि वहां की दुनिया अंधेरी है. दरअसल टाइटैनिक का मलबा अटलांटिक महासागर में चार किलोमीटर नीचे मौजूद है. इस इलाके को ‘मिडनाइट जोन’ कहा जाता है. यहां पनडुब्बी की रोशनी आगे कुछ ही मीटर तक जाती है. ऐसे में यहां ध्यान भटकने का डर बना रहता है.


टाइटैनिक एक्सपर्ट टिम मैटलिन के हवाले से बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि यहां बहुत अंधेरा है और भीषण ठंडा पानी है. वहींं समंदर की सतह पर कीचड़ है जो हिलती-डुलती रहती है. उनके अनुसार, आप उस समय कहां है, ये पता लगाने के लिए आपके पास सिर्फ सोनर नामक चीज होती है. यहां तक कि इस जगह रडार भी काम नहीं करता.   


यह भी पढ़ें: Male and Female Bodyguards: पुरुष या महिला बॉडीगार्ड्स, किन पर ज्यादा भरोसा करते हैं दुनियाभर के शाही परिवार, जानें कितनी होती है इनकी फीस?