ऑपरेशन थिएटर में कदम रखते ही एक बात सबसे पहले आंखों को चौंकाती है, चारों तरफ हरा और नीला रंग. डॉक्टर, नर्स, पर्दे, चादरें, सब एक ही रंग परिवार में क्यों नजर आते हैं? क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरा वैज्ञानिक रहस्य छिपा है? अगर सर्जरी में जान बचाने का काम होता है, तो रंगों की भूमिका क्या है? इसी सवाल का जवाब छिपा है मेडिकल साइंस और मानव आंखों के अद्भुत तालमेल में. आइए जानते हैं.

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मरीजों की सुरक्षा से जुड़ा है नियम

दुनिया के लगभग हर अस्पताल में सर्जरी के समय डॉक्टर हरे या नीले रंग के स्क्रब पहनते हैं. यह दृश्य इतना सामान्य हो चुका है कि लोग इसे परंपरा मान लेते हैं, लेकिन असल में इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक कारण मौजूद हैं. ऑपरेशन थिएटर में रंगों का चयन सिर्फ सौंदर्य के लिए नहीं बल्कि डॉक्टरों की आंखों, दिमाग और मरीज की सुरक्षा से सीधे तौर पर जुड़ा होता है.

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सफेद से हरे-नीले तक का सफर

शुरुआती दौर में सर्जरी के समय डॉक्टर सफेद कोट और सफेद कपड़े पहनते थे. बीसवीं सदी की शुरुआत तक सफेद रंग को स्वच्छता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता था. लेकिन 1914 के आसपास कुछ सर्जनों ने महसूस किया कि लगातार खून देखने के कारण आंखों पर जोर बढ़ता है और सफेद पृष्ठभूमि पर लाल रंग ज्यादा चुभने लगता है. इसके बाद धीरे-धीरे सफेद की जगह हरे रंग का प्रयोग शुरू हुआ, जो आगे चलकर नीले रंग तक फैल गया.

आंखों और दिमाग का विज्ञान

मानव आंखें जब लंबे समय तक किसी एक तेज रंग, खासकर लाल रंग को देखती हैं, तो उनमें कलर फटीग यानी रंगों से थकान होने लगती है. सर्जरी के दौरान डॉक्टरों को लगातार खून और लाल ऊतकों पर ध्यान केंद्रित करना पड़ता है. अगर आसपास का माहौल भी लाल या पीले रंग का हो, तो आंखों को चीजें साफ दिखने में दिक्कत होती है. हरा और नीला रंग लाल रंग के ठीक विपरीत होते हैं, जिससे आंखों को संतुलन मिलता है और विजुअल क्लैरिटी बनी रहती है.

क्यों नहीं लाल या पीला रंग?

लाल रंग सर्जरी के दौरान सबसे अनुपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इससे खून और शरीर के ऊतकों में फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है. वहीं पीला रंग तेज रोशनी में आंखों को चकाचौंध कर सकता है और ध्यान भंग करता है. ऑपरेशन थिएटर में जहां एक-एक सेकंड और एक-एक मिलीमीटर की अहमियत होती है, वहां रंगों की यह छोटी सी गलती भी बड़ा खतरा बन सकती है.

मानसिक शांति और फोकस का असर

हरा और नीला रंग सिर्फ आंखों को ही नहीं, बल्कि दिमाग को भी सुकून देते हैं. मनोविज्ञान के अनुसार ये रंग तनाव कम करते हैं और एकाग्रता बढ़ाते हैं. सर्जरी के दौरान डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ पर अत्यधिक मानसिक दबाव होता है. ऐसे में शांत रंगों का वातावरण उनके निर्णय लेने की क्षमता को बेहतर बनाता है और गलती की संभावना को कम करता है.

रोशनी और रिफ्लेक्शन की भूमिका

ऑपरेशन थिएटर में तेज आर्टिफिशियल लाइट्स का इस्तेमाल होता है. सफेद या चमकीले रंग इन रोशनियों को ज्यादा रिफ्लेक्ट करते हैं, जिससे आंखों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है. इसके विपरीत हरा और नीला रंग कम रिफ्लेक्शन पैदा करते हैं और डॉक्टरों को लंबे समय तक बिना थकान काम करने में मदद करते हैं.

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