आदित्य धर की फिल्म धुरंधर बॉक्स ऑफिस पर लगातार मजबूत कमाई कर रही है. रणवीर सिंह का हमजा वाला किरदार, खुफिया दुनिया की जटिलता और जोखिम को बड़े पर्दे पर प्रभावी ढंग से दिखाता है. लेकिन इसी फिल्म की लोकप्रियता के बीच वास्तविक दुनिया के ऐसे दावे चर्चा में हैं, जो भारतीय खुफिया इतिहास के सबसे दर्दनाक अध्यायों की ओर इशारा करते हैं. सवाल सिर्फ फिल्मी कहानी का नहीं, बल्कि उन फैसलों का है जिनकी कीमत कई एजेंटों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी. आइए जानें.

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क्या शीर्ष नेतृत्व से लीक हुई जानकारी

एक मीडिया हाउस ने एक टीवी कार्यक्रम में दावा किया था कि भारत के कुछ शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं के फैसलों से RAW के गुप्त नेटवर्क उजागर हो गए. उनके अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल के कार्यकाल में पाकिस्तान को RAW के एजेंटों और एसेट्स के नाम-पते तक सौंप दिए गए. मीडिया हाउस का दावा है कि इसके बाद पाकिस्तान में सक्रिय भारतीय एजेंट एक-एक कर मारे गए. उन्होंने इसे भारतीय खुफिया तंत्र के लिए ऐसा झटका बताया, जिससे एजेंसियां आज तक पूरी तरह उबर नहीं पाईं.

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ईरान कनेक्शन और हामिद अंसारी पर आरोप

इस मीडिया हाउस के दावे यहीं नहीं रुकते. उन्होंने यह भी कहा कि जब हामिद अंसारी ईरान में भारत के राजदूत थे, तब वहां सक्रिय भारतीय एसेट्स की जानकारी ईरानी अधिकारियों को दे दी गई. नतीजा यह हुआ कि ईरान में काम कर रहे भारतीय एजेंट्स भी मारे गए. ये आरोप अगर दावों तक सीमित भी हों, तो खुफिया तंत्र की संवेदनशीलता और राजनीतिक फैसलों के असर पर गंभीर सवाल जरूर खड़े करते हैं.

शर्म अल शेख बयान और रणनीतिक नुकसान

2009 में मिस्र के शर्म अल शेख में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान को भी मीडिया हाउस ने भारत की सबसे बड़ी रणनीतिक भूलों में से एक बताया. उस बयान में बलूचिस्तान का जिक्र आने के बाद पाकिस्तान को यह कहने का मौका मिला कि भारत खुद उसके आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस एक बयान ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नैरेटिव बदलने का हथियार दे दिया, जिससे भारत की स्थिति कमजोर पड़ी.

ऑपरेशन कहूटा

इन आरोपों के बीच पूर्व जासूस और NSG कमांडो लकी बिष्ट के बयान ने एक और पुराने घाव को हरा कर दिया. कुछ वक्त पहले लकी बिष्ट ने ऑपरेशन कहूटा को भारत का सबसे बड़ा विफल खुफिया मिशन बताया था. यह ऑपरेशन 1970 के दशक के अंत में पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए शुरू किया गया था. कहूटा में स्थित खान रिसर्च लैबोरेट्रीज उस समय पाकिस्तान के परमाणु सपने का केंद्र थी.

कैसे जुटाए गए परमाणु कार्यक्रम के सबूत

RAW एजेंट्स ने कहूटा के आसपास असामान्य गतिविधियों पर नजर रखी. स्थानीय नाई की दुकानों से वैज्ञानिकों और कर्मचारियों के बालों के नमूने इकट्ठा किए गए. जांच में रेडिएशन के संकेत मिले, जिससे यह साफ हुआ कि वहां परमाणु गतिविधियां चल रही हैं. बिष्ट के मुताबिक, एजेंसी ने मिशन को लगभग अंजाम तक पहुंचा दिया था.

10 हजार डॉलर और एक ऐतिहासिक चूक

लकी बिष्ट के अनुसार, इसी दौरान एक पाकिस्तानी एजेंट ने महज 10,000 अमेरिकी डॉलर के बदले कहूटा परमाणु संयंत्र का पूरा ब्लूप्रिंट देने की पेशकश की थी. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस राशि को मंजूरी नहीं दी और ऑपरेशन रद्द कर दिया गया. बिष्ट का दावा है कि अगर यह मंजूरी मिल जाती, तो पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम उसी समय बेनकाब हो सकता था.

फोन कॉल जिसने सब खत्म कर दिया

बिष्ट का सबसे गंभीर आरोप यह है कि मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक को फोन पर इस मिशन की जानकारी दे दी. इसके बाद ISI ने एक ही रात में पाकिस्तान में सक्रिय RAW एजेंट्स को खत्म कर दिया. बिष्ट ने साफ कहा कि यह इंटेलिजेंस फेलियर नहीं, बल्कि नेतृत्व की विफलता थी. उनके मुताबिक, इस एक कदम ने पाकिस्तान को न केवल अपने कार्यक्रम को सुरक्षित करने का मौका दिया, बल्कि उसे आगे चलकर परमाणु शक्ति भी बना दिया.

खुफिया दुनिया का कड़वा सच

इन तमाम दावों का सीधा असर उन एजेंटों पर पड़ा, जो विदेशी धरती पर देश के लिए काम कर रहे थे. ह्यूमन इंटेलिजेंस सबसे जोखिम भरा और सबसे जरूरी हिस्सा होता है. एक बार अगर एसेट्स की पहचान उजागर हो जाए, तो पूरा नेटवर्क ध्वस्त हो जाता है. यही वजह है कि खुफिया एजेंसियों में राजनीतिक हस्तक्षेप को सबसे बड़ा खतरा माना जाता है.

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