Astronauts in Space: आज के समय में दुनिया भर के देश स्पेस मिशन के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में भारत ने चंद्रमा पर अपना एक सफल मिशन भेज दिया था. उसका नाम था चंद्रयान-3. चंद्रमा पर इससे पहले इंसान भी जा चुका है. सबसे पहले यह कारनामा अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने किया था. एक सवाल सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है कि जब कोई एस्ट्रोनॉट्स स्पेस की यात्रा पर होता है तो उसे डायपर पहनना पड़ता है? ऐसा क्यों होता है? क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण है? आज की स्टोरी में इस सवाल से जुड़े जवाब जानने के क्रम में पता चले एक दिलचस्प किस्सा भी आपके साथ हम शेयर करने वाले हैं. 


एस्ट्रोनॉट्स क्यों पहनते हैं डायपर?


1961 में जब अंतरिक्ष यात्री एलन शेपर्ड अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी बनने की तैयारी कर रहे थे, तो उन्हें एहसास हुआ कि नासा ने एक बड़ी गलती कर दिया है. फ़्रीडम 7 मिशन के लॉन्च के बाद शेपर्ड को घंटों तक उस लॉन्चिंग कैप्सूल में इंतजार करना पड़ा था, उन्होंने मिशन को कंट्रोल कर रहे अधिकारियों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया और बताया कि उन्हें पेशाब लगी है. नासा के वैज्ञानिक शेपर्ड को सूट में पेशाब करने की अनुमति देने में झिझक रहे थे, क्योंकि उन्हें चिंता थी कि मूत्र के कारण उसके सूट के बॉडी मॉनिटरिंग केबल में शॉर्ट-सर्किट हो सकता है. इसके लिए यह तय किया गया कि यात्रियों को डायपर पहनाया जाएगा. ताकि जरूरत पड़ने पर वह उसी में पेशाब कर सके. 


आज के समय में बदल गई है स्थिति


उसके बाद NASA ने डिस्पोजेबल एब्जॉर्प्शन कंटेनमेंट ट्रंक(DACT) बनाया, जिसका उपयोग महिला और पुरुष दोनों अंतरिक्ष यात्रियों के लिए किया जा सकता है. इन पैड्स का उपयोग पहली बार 1983 चैलेंजर मिशन के दौरान किया गया था, और वे विशेष रूप से महिलाओं की जरूरतों को पूरा करते थे, क्योंकि वे रिसाव को रोकने में सक्षम तथा मैनेजेबल और आरामदायक थे. साल 1988 में अभी इस्तेमाल होने वाला गारमेंट बनाया गया था, जो सबसे अधिक मात्रा में रिसाव को अपने अंदर स्टोर करने की क्षमता रखता है. इस सूट को पहले महिलाओं के लिए और बाद में पुरुषों के लिए तैयार किया गया. 1990 के दशक में 3,200 डायपर की आपूर्ति का ऑर्डर दिया गया था. अलग-अलग मिशन में हुए इस्तेमाल के बाद 2007 तक इनमें से लगभग 1,000 उत्पाद बचे थे.


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