जब किसी क्रिकेट टीम का विदेशी दौरा तय होता है, तो मैदान पर खेल जितना चुनौतीपूर्ण होता है, उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी होती है खिलाड़ियों की सुरक्षा की. यह सिर्फ क्रिकेट बोर्ड या टीम मैनेजमेंट का मामला नहीं, बल्कि कई देशों में सरकार से लेकर सुरक्षा एजेंसियों तक का संयुक्त प्रयास होता है. सवाल यह है कि जब कोई टीम दूसरे देश में खेलने जाती है, तो उसकी सुरक्षा की देखरेख कौन करता है और एक खिलाड़ी की सुरक्षा पर आखिर कितना खर्च आता है?

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कौन तय करता है सुरक्षा

किसी विदेशी दौरे से पहले सबसे पहले दोनों देशों के बीच सुरक्षा मूल्यांकन (Security Assessment) किया जाता है. इसमें स्थानीय पुलिस, खुफिया एजेंसियां और मेजबान बोर्ड मिलकर तय करते हैं कि टीम कहां रहेगी, किस रूट से स्टेडियम जाएगी, और किन इलाकों में जोखिम की संभावना है. इसके आधार पर सिक्योरिटी रिंग्स तैयार की जाती हैं, यानी टीम के होटल, बस, स्टेडियम और प्रैक्टिस एरिया के चारों ओर पुलिस और निजी सुरक्षा एजेंटों की कई परतें तैनात की जाती हैं.

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कैसे तय होती है खिलाड़ियों की सुरक्षा

मेजबान देश का क्रिकेट बोर्ड इस पूरी सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मेदार होता है. उदाहरण के तौर पर, जब कोई टीम भारत आती है, तो BCCI स्थानीय राज्य सरकारों के साथ मिलकर सुरक्षा तैयार करता है. वहीं, जब भारतीय टीम विदेश जाती है, तो वहां की स्थानीय एजेंसियां जिम्मेदारी संभालती हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया में पुलिस और Cricket Australia, इंग्लैंड में ECB और सुरक्षा विभाग, या पाकिस्तान में PCB के साथ सरकारी एजेंसियां.

कितनी खर्चा होती है रकम

अब बात खर्च की करें तो, सुरक्षा किसी छोटी रकम का खेल नहीं है. एक औसत अंतरराष्ट्रीय दौरे में, एक खिलाड़ी की सुरक्षा पर करीब 20 से 30 लाख रुपये तक खर्च हो सकता है. इसमें निजी सुरक्षा गार्ड, बुलेटप्रूफ वाहन, होटल सिक्योरिटी, पुलिस एस्कॉर्ट, और खुफिया निगरानी सब शामिल होते हैं. अगर देश हाई-रिस्क जोन में आता है, तो यह खर्च दोगुना तक बढ़ जाता है. उदाहरण के लिए, 2009 में श्रीलंका टीम पर लाहौर में हुए हमले के बाद पाकिस्तान में विदेशी टीमों के लिए सुरक्षा लागत कई गुना बढ़ गई थी.

हर सीरीज के बाद बोर्ड इन खर्चों का ऑडिट करता है, ताकि भविष्य में सुरक्षा प्रोटोकॉल और बेहतर बनाए जा सकें, क्योंकि क्रिकेट अब सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि खिलाड़ियों की जिंदगी की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बन चुका है.

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