कभी सोचा है कि जिस चॉकलेट के टुकड़े को हम खुशी, प्यार या गिफ्ट का सिंबल मानते हैं, उसका असली सफर कहां से शुरू होता है? वो कोको बीन्स, जिनसे यह स्वाद बनता है, वो धरती के सिर्फ कुछ ही देशों में उगते हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि दुनिया के टॉप कोको प्रोड्यूसर भारत में नहीं हैं, जबकि भारत की मिट्टी उपजाऊ है और खेती का इतिहास हजारों साल पुराना है. फिर भी अपना देश इस मीठे कारोबार में पिछड़ा हुआ है, तो टॉप पर कौन है. चलिए जानें.
सबसे ज्यादा कौन उगाता है कोको?
दुनिया में चॉकलेट की डिमांड हर साल बढ़ती जा रही है, लेकिन कोको उत्पादन में बाजी मार ली है कोटे डी आइवर (Côte d’Ivoire) ने, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा कोको उत्पादक देश है. अकेले यह देश दुनिया की कुल कोको सप्लाई का लगभग 33% हिस्सा देता है. इसके बाद दूसरे नंबर पर आता है घाना, जो भी बड़े पैमाने पर कोको की खेती करता है. इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था में कोको निर्यात अहम भूमिका निभाता है. दुनिया के टॉप कोको प्रोड्यूसर अफ्रीका में ही हैं.
भारत का क्या है हाल?
अब बात भारत की करें, तो तस्वीर कुछ अलग ही है. भारत में कोको की खेती सीमित इलाकों में होती है, मुख्य रूप से केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में. यह फसल यहां अक्सर नारियल और सुपारी के पेड़ों के नीचे इंटरक्रॉपिंग के तौर पर उगाई जाती है, यानी किसान इसे दूसरी फसलों के साथ जोड़कर उगाते हैं.
वित्त वर्ष 2022 में आंध्र प्रदेश ने करीब 11,000 मीट्रिक टन कोको उत्पादन किया था, जो देश का लगभग 40% हिस्सा है. वहीं केरल में इसका उत्पादन करीब 9600 टन रहा. बाकी हिस्से तमिलनाडु और कर्नाटक से आते हैं. लेकिन, जब आप इसे ग्लोबल फिगर से तुलना करते हैं, तो भारत का हिस्सा कुल विश्व उत्पादन में 1% से भी कम है.
किस वजह से भारत कोको उगाने में पीछे?
असल में, कोको एक नमी पसंद, छाया वाली फसल है. इसे लगातार बारिश और स्थिर तापमान की जरूरत होती है, जो सिर्फ दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में ही मिलता है. साथ ही, इसका रिटर्न धीरे-धीरे आता है. वहीं पौधों को फल देने में 3 से 5 साल लगते हैं. यही कारण है कि भारतीय किसान, जो आमतौर पर सालाना फसल पर निर्भर रहते हैं, वो कोको जैसी दीर्घकालिक फसल में निवेश से हिचकिचाते हैं.
इसके अलावा, देश में कोको की प्रोसेसिंग इंडस्ट्री सीमित है. भारत में चॉकलेट कंपनियां (जैसे कैडबरी, नेस्ले, अमूल) ज्यादातर कोको आयात करती हैं. अगर स्थानीय उत्पादन बढ़े तो न सिर्फ आयात पर निर्भरता घटेगी बल्कि किसानों की आय भी दोगुनी हो सकती है.
भारतीय कोको की बन रही पहचान
दिलचस्प बात यह है कि कुछ स्टार्टअप्स और कोऑपरेटिव्स अब इंडियन कोको को प्रमोट करने में जुटे हैं. केरल और कोडगु में अब फार्म-टू-बार चॉकलेट ब्रांड उभर रहे हैं, जो कोको को सीधे किसानों से लेकर उच्च गुणवत्ता की चॉकलेट बना रहे हैं. ये छोटे स्तर पर जरूर हैं, लेकिन भारतीय कोको की पहचान बनाने की शुरुआत यहीं से हो रही है.
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