भारत की धरती रहस्यों, आस्था और दिव्य शक्तियों से भरी हुई है. यहां हजारों मंदिर, तीर्थ और शक्तिपीठ हैं, लेकिन कुछ स्थान ऐसे भी हैं जो अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण पूरे देश में अद्वितीय माने जाते हैं.  ऐसे ही क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा भी पवित्र तीर्थ है जहां भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग और मां शक्ति का शक्तिपीठ दोनों एक ही परिसर में स्थित हैं.  देश के करोड़ों भक्तों के लिए यह जगह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र माना जाता है. तो आइए जानते हैं कि देश की वो एकमात्र जगह कौन सी है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ के दर्शन एकसाथ होते हैं. 

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ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ के दर्शन एकसाथ कहां होते हैं

यह अद्भुत स्थान आंध्र प्रदेश के नल्लामाला जंगलों के बीच बसा श्रीशैलम है. यह वह भूमि है जहां शिव और शक्ति की एनर्जी एक साथ एक्सपीरियंस की जा सकती है.  कृष्णा नदी के किनारे, गहरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा श्रीशैलम देखने में ही ऐसा लगता है कि कोई प्राचीन कथा जीवंत हो उठी हो, यहां की शांति, यहां की हवा, और यहां की पवित्रता मन को अंदर तक छू जाती है. दूर-दूर से आने वाले यात्री कहते हैं कि श्रीशैलम पहुंचते ही मन को एक अनोखा सुकून मिल जाता है. 

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12 ज्योतिर्लिंगों में एक मल्लिकार्जुन स्वामी

श्रीशैलम के प्रमुख मंदिर का नाम मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर है. यह भगवान शिव के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है. मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां प्रकट हुए थे अपने पुत्र कार्तिकेय को मनाने के लिए, जो किसी गलतफहमी के कारण क्रौंच पर्वत पर रहने चले गए थे. यहां की एनर्जी इतनी शांत और पवित्र मानी जाती है कि भक्त सिर्फ दर्शन भर से आत्मिक हल्कापन महसूस करते हैं. 

शक्तिपीठ और कल्याणकारी रूप

ज्योतिर्लिंग के ठीक पास ही मां भ्रमराम्बा का शक्तिपीठ स्थित है, जो 18 महाशक्ति पीठों में से एक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, यही वह स्थान है जहां माता सती की गर्दन गिरी थी, और तभी से यहां देवी को भ्रमराम्बा यानी मधुमक्खियों की रानी के रूप में पूजा जाता है. माना जाता है कि यहां दर्शन करके  भक्तों को अपनी मुश्किलों, नकारात्मक शक्तियों और सुरक्षा मिलती हैं. 

श्रीशैलम की प्राकृतिक सुंदरता

श्रीशैलम अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है है. यहां आपको घने नल्लामाला वन, बहती कृष्णा नदी, दुर्लभ वन्यजीव, अक्कमहादेवी गुफाएं, जहां प्राचीन संत साधना किया करते थे, पठाला गंगा, जहां डोंगी से सफर करते हुए मन अनोखा लगता है.  70 किलोमीटर लंबी गिरिप्रदक्षिणा, जो कई भक्त सालों में एक बार जरूरी करते हैं. यह यात्रा हर यात्री के लिए एक बड़ा एक्सपीरियंस बन जाती है. 

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