प्लास्टिक बेबी कोई मेडिकल टर्म नहीं है. यह शब्द कभी-कभी मीडिया या आम लोग उन नवजात शिशुओं के लिए प्रयोग करते हैं, जो किसी दुर्लभ आनुवंशिक या जन्मजात त्वचा रोग से पीड़ित होते हैं. इसमें त्वचा चमकदार, मोटी और प्लास्टिक जैसी दिखाई देती है. इसमें कई ऐसा कारण हैं जो शिशुओं के त्वचा को प्लास्टिक जैसी बना देते हैं. यह आमतौर पर कई कारणों से संबंधित होती है. भारत के कुछ राज्यों में प्लास्टिक बेबी पैदा होने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इसमें नवजात शिशु कोलॉडियन बेबी सिंड्रोम से पीड़ित हो सकते हैं. इसके कारण उनकी त्वचा चमकदार, मोटी और प्लास्टिक जैसी दिखाई देती है. यह बीमारी बच्चे की त्वचा के विकास में बाधा भी बनती है. बच्चों में यह जन्म के समय या कुछ घंटे बाद दिखाई देता है. 

भारत में कहां कहां पैदा हो चुके है प्लास्टिक बेबी

भारत में प्लास्टिक बेबी के कुछ मामले सामने आ चुके हैं. भारत के कुछ शहर जिसमें पंजाब के अमृतसर, राजस्थान के बीकानेर, बहराइच, बिहार के औरंगाबाद जैसी जगह शामिल है. यहां कुछ ऐसे केस हैं, जहां ऐसे शिशुओं का जन्म हुआ है. हालांकि अन्य जगहों पर भी प्लास्टिक बेबी पैदा होने संभव है. यह रोग माता-पिता से बच्चों को विरासत में मिलता है. यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक को भी इस बीमारी का जीन होता है, तो उनके बच्चे में भी यह बीमारी होने का खतरा रहता है. 

इस बीमारी में बच्चों को किन किन चीजों का खतरा होता है?

कोलॉडियन बेबी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों जैसे ही होते हैं. इनके शरीर में सारे फंक्शन होता है, जो एक सामान्य रूप से पैदा होने वाले में बच्चा में होता है. इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चों की स्किन काफी पतली हो जाती है और इनकी त्वचा में स्ट्रेच नहीं होता है. ऐसे में बच्चों के शरीर में मूवमेंट नहीं होता है. बच्चा जब सांस लेता है तो शरीर में मूवमेंट होने की वजह से स्किन में क्रैक्स आ जाते हैं. यह एक ऑटोसोमल रिसेसिव आनुवंशिक रोग है. इसमें बच्चे का काफी ख्याल रखा जाता है.

इसे भी पढ़ें- बीयर का झाग नहीं बना तो क्या पेट में होती है गैस की दिक्कत? जान लीजिए क्या है सच