अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में हिंट दिया था कि उनकी सरकार अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर दोबारा कंट्रोल को लेकर तालिबान से बात कर रही है. यह वही एयरबेस है, जो कभी अफगानिस्तान में अमेरिका की सबसे बड़ी सैन्य चौकी हुआ करती थी. ट्रंप के इस बयान के तुरंत बाद तालिबान ने इन चर्चाओं से जुड़ी बातों को पूरी तरह खारिज कर दिया था.
अफगानिस्तान का बगराम, जो आज काबुल से करीब 60 किलोमीटर उत्तर में स्थित है, इतिहास के पन्नों में एक बेहद अहम जगह रहा है. यह सिर्फ एक एयरबेस या सैन्य ठिकाना नहीं, बल्कि सभ्यताओं, साम्राज्यों और युद्धों का साक्षी भी रहा है. यह वही इलाका है जहां से कभी भारतीय साम्राज्य की सीमाएं फैला करती थीं और जहां सिकंदर, चंगेज खान और बाबर जैसे बड़े विजेता भी कदम रख चुके हैं. बगराम का नाम भले ही अब युद्धों और सैन्य ठिकानों से जुड़ा हो, लेकिन इसके पीछे एक हजारों साल पुराना गौरवशाली इतिहास छिपा है.
भारत से जुड़ा बगराम का रिश्ता
अगर इतिहास के पन्ने पलटें, तो बगराम कभी कापिशा नाम से जाना जाता था. यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था, जब सम्राट अशोक ने अफगानिस्तान तक अपने शासन की सीमाएं बढ़ाई थीं. बगराम (कापिशा) गांधार क्षेत्र के उत्तर में स्थित था और यहां बौद्ध संस्कृति का गहरा प्रभाव दिखाई देता था. यहां से कई बौद्ध मूर्तियां, सिक्के और शिलालेख मिले हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह इलाका कभी भारतीय सभ्यता का हिस्सा था.
सिकंदर महान और बगराम का संबंध
ईसा पूर्व 327 में जब सिकंदर महान ने भारत की ओर बढ़ना शुरू किया, तब वह अफगानिस्तान के इस क्षेत्र से होकर गुजरा था. बगराम उस समय एक समृद्ध नगर था और भारतीय प्रभाव वाले गांधार प्रदेश का महत्वपूर्ण केंद्र था. सिकंदर ने यहां रुककर अपनी सेना को आराम दिया और आगे भारत की दिशा में बढ़ा. उस दौर में बगराम व्यापार, संस्कृति और सेना की दृष्टि से रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था.
चंगेज खान और बगराम की तबाही
13वीं सदी में मंगोल आक्रमणों ने पूरे मध्य एशिया और अफगानिस्तान को हिला कर रख दिया था. चंगेज खान की सेना जब इस क्षेत्र से गुजरी, तो बगराम भी उनके निशाने पर आया. यह इलाका उस समय खुरासान और भारत के बीच व्यापार का मुख्य रास्ता था. मंगोलों ने यहां भारी तबाही मचाई, जिससे बगराम की बौद्ध और हिंदू विरासत बुरी तरह प्रभावित हुई. इसके बाद यह क्षेत्र धीरे-धीरे इस्लामी शासन के अधीन आ गया.
बाबर और बगराम का मुगल कनेक्शन
बगराम का नाम फिर से इतिहास में तब आया जब 16वीं सदी में बाबर ने काबुल को अपना केंद्र बनाया. बाबर भारत पर आक्रमण करने से पहले कई सालों तक अफगानिस्तान में रहा. बगराम उस वक्त उसके सामरिक इलाकों में से एक था. यहां से वह अपनी सेना और जरूरी सामानों का प्रबंधन करता था. कहा जाता है कि भारत पर चढ़ाई करने की कई योजनाएं बाबर ने काबुल और बगराम के इलाकों में रहते हुए ही बनाई थीं. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि बगराम ने मुगल साम्राज्य के इतिहास में भी परोक्ष भूमिका निभाई.
भारत की सांस्कृतिक छाप आज भी मौजूद
पुरातात्विक खुदाई में बगराम से जो मूर्तियां, सिक्के और हस्तशिल्प मिले, वे आज भी भारत और बौद्ध संस्कृति की झलक दिखाते हैं. यहां से मिली मूर्तियां आज फ्रांस के लौवर म्यूजियम और काबुल म्यूजियम में सुरक्षित हैं. ये मूर्तियां गंधार कला शैली की हैं, जो भारत की प्राचीन कला और संस्कृति की मिसाल पेश करती हैं.
यह भी पढ़ें: Mughal Period Village: दिल्ली के सबसे पुराने गांव कौन-से, जानें मुगलों के जमाने से कायम है कौन-सा गांव?