India Pollution: दिल्ली एनसीआर में हवा का प्रदूषण एक बार फिर से गंभीर कैटेगरी में पहुंच चुका है. ऐक्यूआई लेवल 400-500 के पार हो चुका है और इससे सेहत को गंभीर खतरा है. इस बिगड़ती स्थिति के बीच भारत में चीनी दूतावास ने हवा के प्रदूषण को कंट्रोल करने में चीन के अनुभव को साझा किया है. चीनी दूतावास ने भारत से बीजिंग मॉडल का अध्ययन करने और उसे अपनाने का आग्रह किया है. आइए जानते हैं क्या है बीजिंग मॉडल.

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क्या है बीजिंग मॉडल 

बीजिंग मॉडल चीन द्वारा अपनी राजधानी में काफी ज्यादा वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनाई गई एक मल्टी लेयर रणनीति है. यह 2013 में शुरू की गई थी, जब बीजिंग की हवा की क्वालिटी संकट के स्तर पर पहुंच गई थी. एक दशक के अंदर चीन के इस मॉडल के जरिए प्रदूषण में भारी कमी आई है और 2013 से 2024-25 के बीच पीएम2.5 का स्तर लगभग 64% कम हो गया है.

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अल्ट्रा सख्त उत्सर्जन नियम 

बीजिंग मॉडल के मुख्य नियमों में से एक है अल्ट्रा सख्त उत्सर्जन. चीन ने चाइना 6 उत्सर्जन मानदंडों को लागू किया है. यह यूरो 6 मानकों के बराबर है. पुरानी हाई एमिशन वाली गाड़ियों को सिस्टमैटिक तरीके से सड़कों से हटा दिया गया जबकि नई गाड़ियों को सड़कों पर तभी चलने दिया गया जब वह इन सख्त मानदंडों को पूरा करती थी. इससे गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण में तेजी से कमी देखने को मिली. 

सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कम करना 

उन शहरों के ठीक उलट जो सिर्फ साफ ईंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं बीजिंग ने गाड़ियों की संख्या पर भी ध्यान दिया. शहर ने एक लाइसेंस प्लेट लॉटरी सिस्टम को शुरू किया. इससे हर साल कितनी नई गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है इसकी सीमा तय की गई. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अत्यधिक प्रदूषण वाले समय में ओड इवन ड्राइविंग नियम और वीकेंड प्रतिबंध जैसे उपाय भी लागू किए गए. 

पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर जोर 

बीजिंग मॉडल की एक खास बात पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भारी निवेश है. बीजिंग दुनिया के सबसे बड़े मेट्रो और इलेक्ट्रिक बस नेटवर्क में से एक का संचालन करता है. इस समय चीन ने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की तरफ तेजी से कदम बढ़ाया, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और पॉलिसी सपोर्ट दिया. 

कोयले से गैस में बदलाव 

औद्योगिक प्रदूषण से सीधे निपटा गया. 3000 से ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्री को या तो पूरी तरह बंद कर दिया गया या फिर बीजिंग से बाहर शिफ्ट कर दिया गया. इसी के साथ बीजिंग ने कोयले से गैस में बदलाव लागू किया. घरों और उद्योगों में कोयले से चलने वाले बॉयलर पर बैन लगा दिया गया. 2017 तक कोयले की खपत में लगभग 11 मिलियन टन की कमी आई.

भारत में क्यों इस मॉडल की जरूरत

दरअसल दिल्ली एनसीआर को वैसे ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसी बीजिंग ने कभी की थी. वाहनों से होने वाले प्रदूषण और क्षेत्रीय प्रदूषण का फैलाव इस मुसीबत को और बढ़ा रहे हैं. अगर भारत हवा की गुणवत्ता में स्थायी सुधार चाहता है तो टुकड़ों में समाधान के बजाए एक सख्त और और बड़ा कदम उठाना पड़ेगा.

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