Waqf Amendment Bill: वक्फ संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए बुधवार को लोकसभा में लाया जाएगा. इस दौरान हंगामा होने के पूरी आसार जताए जा रहे हैं. दरअसल 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में दो वक्फ संसोधन विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ निरसन विधेयक  2024 पेश किए गए. इस विधेयक को लाने का उद्देशय वक्फ बोर्ड के काम को व्यवस्थित करना और वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन सुनिश्चित करना है. ऐसे में सवाल उठता है कि वक्फ आखिर कब से चला आ रहा है? क्या मुगल काल में भी वक्फ का आस्तित्व था. अगर हां तब कैसे इसका संचालन होता था. चलिए जानें. 

पैगंबर हजरत मुहम्मद के जमाने से शुरू हुआ वक्फ

दुनिया में वक्फ का इतिहास पैगंबर हजरत मुहम्मद के जमाने से शुरू हुआ है. पैगंबर मुहम्मद ने कहा था कि अपनी जायदाद को खैरात में इस तरीके से दो कि न तो वह किसी को बेची जा सके, न किसी को दी जा सके और न ही उसमें किसी की विरासत जारी हो, बल्कि उसका मुनाफा लोगों को मिला करे. ऐसा माना जाता है कि दुनिया में सहाबा हजरत उमर ने पहली बार अपनी कीमती जमीन को वक्फ के नाम किया था. भारत में वक्फ का इतिहास बहुत पुराना बताया जाता है. 

भारत में कब आया वक्फ

भारत में इस्लाम की शुरुआत के साथ ही यहां पर मुसलमानों ने अपनी संपत्ति को वक्फ में देना शुरू कर दिया था. जानकारों की मानें तो मुगलकाल में फिरोज शाह तुगलक के जमाने से ही वक्फ को व्यवस्थित करने का काम शुरू कर दिया गया था. हालांकि इसको शुरू होने की सटीक तारीख का पता नहीं चल पाया है. हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वक्फ की शुरुआत 12वीं सदी के अंत में मुहम्मद गोरी के समय से हुई थी. गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया था, इसके बाद उसने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए इस्लामी संस्थाओं को बढ़ावा देने का काम किया था. ऐसे में उसने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव दान किए थे, इसे ही भारत में वक्फ के पहले उदाहरण के रूप में जाना जाता है. 

इस्लाम में कितना जरूरी है वक्फ

मुगल शासकों के दौर में वक्फ को और मजबूत किया गया था. बाबर (1526-1530) और अकबर (1556-1606) ने इसे संगठित रूप दिया था. अकबर ने भी अपने धार्मिक कार्यों के लिए जमीनें दान की थीं. इसी से वक्फ की प्रथा फैली थी और इसी तरह से इल्तुतमिश को वक्फ की नींव रखने वाला माना जाता है, लेकिन धीरे-धीरे इस प्रथा का विकास हुआ. इस्लाम में वक्फ को नमाज और हज जितना ही जरूरी माना जाता है. भारत में यह परंपरा करीब 1400 सालों से चली आ रही है. केंद्र सरकार का यह संशोधन विधेयक आखिर कितना कारगर होता है, यह तो आने वाला समय बता पाएगा.