कभी सोचा है कि वोट डालने के बाद उंगली पर जो बैंगनी निशान लगता है, वो आखिर इतना गहरा क्यों होता है? क्यों उसे लाख कोशिशों के बाद भी मिटाया नहीं जा सकता? और क्या आपको पता है कि इस स्याही का रहस्य सिर्फ भारत के पास है, इतना कि दुनिया के 90 देश इसे हमसे खरीदते हैं! यह वही स्याही है, जो लोकतंत्र की पहचान भी है और धोखाधड़ी के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार भी. लेकिन इस स्याही की कहानी सिर्फ केमिकल्स तक सीमित नहीं है. चलिए इसके पीछे की पूरी कहानी और इसका चुनावी कनेक्शन समझें.
अमिट स्याही का असली रहस्य
भारत में जब भी चुनाव होते हैं, तो हर वोटर की पहचान एक छोटी सी स्याही की लाइन से होती है. यह कोई साधारण निशान नहीं, बल्कि लोकतंत्र की ईमानदारी का सबूत है. बाएं हाथ की तर्जनी पर लगाई जाने वाली यह स्याही दुनिया के सामने भारत की चुनावी पारदर्शिता की पहचान बन चुकी है.
इसे कहा जाता है अमिट स्याही या Indelible Ink, यानी ऐसी स्याही जो चाहे जितना रगड़ो, पानी या केमिकल से धो डालो, फिर भी मिटे नहीं. शुरू में यह बैंगनी रंग की दिखती है, लेकिन कुछ घंटों बाद धीरे-धीरे काली पड़ जाती है.
कहां बनती है यह स्याही
भारत में इस खास स्याही का उत्पादन केवल दो जगहों पर होता है- मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (Mysore Paints & Varnish Ltd), कर्नाटक और दूसरा है- रायुडू लेबोरेटरी, हैदराबाद, तेलंगाना.इनमें से मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड की स्याही का इस्तेमाल भारत के हर चुनाव में किया जाता है. वहीं रायुडू लेबोरेटरी की स्याही विदेशों में भेजी जाती है. यह वही भारतीय स्याही है, जो अब तक लगभग 90 देशों में चुनावों का हिस्सा बन चुकी है. इनमें थाईलैंड, मलेशिया, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, नेपाल जैसे कई देश शामिल हैं.
क्यों नहीं मिटता यह निशान?
इस स्याही की खासियत इसके केमिकल कंपोजिशन में है. इसमें 10 से 18 प्रतिशत तक सिल्वर नाइट्रेट होता है. जब यह स्याही उंगली पर लगाई जाती है, तो हमारे शरीर की त्वचा में मौजूद नमक (Sodium Chloride) के साथ यह प्रतिक्रिया करती है और सिल्वर क्लोराइड बना देती है.
सिल्वर क्लोराइड की सबसे खास बात यह है कि यह पानी में घुलता नहीं है. यही वजह है कि यह त्वचा की ऊपरी परत से मजबूती से चिपक जाता है. स्याही लगाने के 40 सेकंड के अंदर यह पूरी तरह सूख जाती है, और सूरज की रोशनी या पानी के संपर्क में आने पर इसका रंग काला हो जाता है. भले ही आप साबुन, तेल या डिटर्जेंट से इसे हटाने की कोशिश करें, यह कम से कम 72 घंटे तक वहीं टिका रहता है.
चुनाव आयोग की सख्त प्रक्रिया
भारत का चुनाव आयोग इस स्याही के इस्तेमाल को लेकर बेहद सख्त है. मार्च 2015 में जारी आदेश के अनुसार, स्याही को बाएं हाथ की तर्जनी के नाखून के सिरे से लेकर पहले जोड़ तक ब्रश से लगाया जाना जरूरी है.
जिस ब्रश से यह स्याही लगाई जाती है, वह भी मैसूर पेंट्स कंपनी ही बनाती है. मतदाता की उंगली पर निशान लगाने के बाद ही ईवीएम का बटन दबाया जा सकता है. यह जिम्मेदारी मतदान केंद्र के उस अधिकारी की होती है जो कंट्रोल यूनिट संभालता है.
अगर पहले से उंगली में स्याही लगी हो तो क्या होता है?
2021 में चुनाव आयोग ने इस पर भी साफ निर्देश दिए थे. चुनाव आयोग का कहना था कि अगर किसी मतदाता की तर्जनी पर पुराने चुनाव की स्याही अभी भी दिख रही हो, तो नई स्याही मध्यमा (बीच की उंगली) में लगाई जाएगी. अगर वह भी स्याही से चिह्नित हो, तो निशान अनामिका (रिंग फिंगर) में लगाया जाएगा. लेकिन यह नियम तभी लागू होता है जब दोनों चुनावों के बीच का अंतर दो महीने से कम हो.
हर चुनाव में लाखों बोतलें होती हैं तैयार
भारत जैसे विशाल देश में हर चुनाव के लिए लाखों स्याही की बोतलें तैयार करनी पड़ती हैं. 2014 के आम चुनावों में 21 लाख बोतलों का ऑर्डर दिया गया था, जबकि 2019 के चुनावों में यह बढ़कर 26 लाख बोतलें हो गया.
दिलचस्प बात यह है कि एक बोतल स्याही से लगभग 300 मतदाताओं की उंगलियों पर निशान लगाया जा सकता है. यानी हर चुनाव में करोड़ों भारतीय इस एक ही वैज्ञानिक फार्मूले से चिह्नित होते हैं.
कब से शुरू हुई चुनाव में यह परंपरा?
भारत में पहली बार अमिट स्याही का इस्तेमाल 1962 के लोकसभा चुनाव में हुआ था. तब से लेकर अब तक यह हर आम और विधानसभा चुनाव में अनिवार्य है. यह स्याही न सिर्फ दोबारा वोट डालने से रोकती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि वोटिंग प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष बनी रहे.
दुनिया के चुनावों में भारत की अमिट छाप
भारत का यह चुनावी नवाचार अब दुनिया भर में लोकतंत्र की पहचान बन चुका है. दुनिया के करीब 90 देशों ने इस इंडियन इंक को अपनाया है. यह केवल उत्पाद नहीं, बल्कि भारतीय चुनावी प्रबंधन की विश्वसनीयता का प्रतीक बन चुका है.
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