Vladimir Putin India Visit: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत की दो दिवसीय यात्रा पर हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पालम एयरपोर्ट पर पुतिन का भव्य स्वागत किया. एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन एक साथ टोयोटा फॉर्च्यूनर में बैठकर एयरपोर्ट से निकले. ऐसा कहा जा रहा है कि पुतिन के लिए इस्तेमाल की गई फॉर्च्यूनर में हाई एंड आर्मरिंग की गई परतें लगाई गई थी और इसे रूसी सुरक्षा एजेंसी ने क्लियर किया था. इसी बीच आइए जानते हैं कि एक आम आदमी अगर अपनी फॉर्च्यूनर को बुलेट प्रूफ बनाए तो उसमें कितना खर्चा आएगा.
फॉर्च्यूनर को बुलेट प्रूफ बनाने में कितना खर्च आता है
स्टैंडर्ड आर्मरिंग के लिए टोयोटा फॉर्च्यूनर को बुलेट प्रूफ बनाने में आमतौर पर 25 लाख रुपए से 45 लाख रुपए का खर्च आता है. लेकिन अगर कोई हाई लेवल बैलिस्टिक सुरक्षा को चाहता है जो इंटरनेशनल vr7 या फिर vr9 स्टैंडर्ड के बराबर हो, जिसे एसॉल्ट राइफल की गोलियों का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया हो तो कीमत ₹60 लाख से 1 करोड़ तक जा सकती है. यह कीमत इस वजह से बढ़ जाती है क्योंकि बुलेट प्रूफिंग के लिए गाड़ी के बड़े हिस्से को बैलिस्टिक मटेरियल से बदलना पड़ता है.
बुलेट प्रूफ खिड़कियां
पहला और सबसे जरूरी अपडेट होता है बैलिस्टिक ग्लास. यह खिड़कियां पॉलीकार्बोनेट और ग्लास की परतों से बनी होती हैं जो तेज रफ्तार गोलियों को बिना टूटे रोक सकती हैं. बुलेट प्रूफ खिड़कियां विजिबिलिटी में होने वाली गड़बड़ी को भी कम करती हैं और इससे हमले के दौरान भी केबिन सेल ही रहता है.
पूरे केबिन की सुरक्षा के लिए आर्मर्ड बॉडी पैनल
यात्री की सुरक्षा के लिए सभी दरवाजे, पिलर, छत और साइड की दीवारों पर बैलिस्टिक स्टील या फिर एडवांस्ड कंपोजिट आर्मर लगाया जाता है. ये मटेरियल गोलियों को बिना टूटे सोखने और मोड़ने के लिए डिजाइन किए गए हैं. यही वह परत होती है जो फॉर्च्यूनर को वीआईपी काफिले में इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों की तरह सुरक्षित गाड़ी में बदल देती है.
विस्फोट को रोकने के लिए फ्यूल टैंक की सुरक्षा
हमले के दौरान सबसे कमजोर हिस्सा फ्यूल टैंक होता है. आर्मरिंग कंपनियां सेल्फ सेलिंग या फिर बैलिस्टिक कवर लगाती हैं. इनकी मदद से गोली लगने पर भी टैंक फटता नहीं और ना ही उसमें आग लगती है.
हमले के दौरान सुरक्षित भगाने के लिए रन फ्लैट टायर
अगर टायर पर गोली भी लग जाए तब भी रन फ्लैट टेक्नोलॉजी फॉर्च्यूनर को 80 से 100 किलोमीटर तक चलने देती है. इन टायर में मजबूत साइडवॉल और अंदरूनी रिंग होते हैं जो हवा न होने के बावजूद भी कार का वजन संभालते हैं.
बड़े हुए वजन के लिए सस्पेंशन और ब्रेक अपग्रेड
आर्मर्ड होने के बाद फॉर्च्यूनर काफी ज्यादा भारी हो जाती है. सेफ्टी और कंट्रोल के लिए सस्पेंशन सिस्टम को मजबूत किया जाता है, ब्रेक अपग्रेड किए जाते हैं और साथ ही एक्स्ट्रा लोड को संभालने के लिए इंजन को रीमैप किया जाता है.
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