कभी आपने ऐसा देखा है कि किसी यूरिनल में मक्खी बनी हुई हो और मक्खी भी प्रिंट की हुई हो. ऐसा शायद ही देखा होगा कि और आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा करने की जरुरत भी क्यों है. लेकिन, दुनिया के कुछ देशों में ऐसा होता है और वहां मेल यूरिनल में बीच में एक मक्खी प्रिंट की जाती है. ऐसा नहीं है कि मक्खी बनाने के पीछे कोई रिवाज या डिजाइन है, बल्कि ऐसा करने के पीछे एक प्रेक्टिकल कारण है. ये मक्खी खर्चा कम करने और लोगों का काम कम करने के लिए बनाई जाती है. 

तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर टॉयलेट के बीच में मक्खी क्यों बनी होती है और इससे बनाने से किस तरह खर्चा और मेन पावर कम की जाती है. तो जानते हैं इस मक्खी की पूरी कहानी...

क्या है मक्खी की कहानी?

आपको बताते हैं कि यूरिनल में जो मक्खी बनाई जाती है, उसे यूरिनल टारगेट कहा जाता है. ये मेल यूरिनल में बनाए जाते हैं. इसमें यूरिनल के बीच में एक मक्खी होती है और इसका लक्ष्य इसे टारगेट करके यूरिन करवाने का होता है. जब इसकी शुरुआत की गई थी, ये माना गया था कि जब यूरिनल में ये मक्खी बना दी जाएगी तो मेल इसे टारगेट करके ही यूरिन करेंगे. खास बात ये है कि ऐसा करने के बाद उम्मीद के हिसाब से रिजल्ट भी देखने को मिले. 

क्यों बनाई गई थी मक्खी?

अब बात करते हैं कि आखिर ये बनाई क्यों गई. दरअसल, ये शिकायत रहती थी लोग यूरिनल के बाहर ज्यादा यूरिन करते हैं, इससे सफाई का काम बढ़ जाता है. इस सफाई के काम को कम करने के लिए ये मक्खी बनाई गई, जिससे लोग इस पर टारगेट करके यूरिन करें और यूरिन पूरी तरह यूरिनल में ही जाए. जब यूरिनल में मक्खी दिखाई देती है तो हर कोई उस पर ही टारगेट करता है और इसका नतीजा ये रहा कि सही में लोगों ने ऐसा ही किया. 

कहां हो रहा है ऐसा?

बता दें कि सबसे पहले ब्रिटेन में इसकी शुरुआत हुई और उस वक्त इसका मजाक भी बना. 1990 की शुरुआत में तो ये एक्सपेरिमेंट एम्सटर्डम एयरपोर्ट पर भी किया गया. इसके बाद ये आइडिया स्कूल, एयरपोर्ट, स्टेडियम और कई पब्लिक प्लेस पर अपनाया गया. 

ये भी पढ़ें- सांसद और विधायक की सैलरी में कितना होता है अंतर, जानें चुनाव जीतने वाले एमपी पर क्या फर्क पड़ेगा?