केंद्र सरकार जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने के बारे में विचार कर रही है. राजधानी दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में जली हुई नगदी बरामद हुई थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच समिति ने दोषी ठहराया था. सरकारी सूत्रों ने कहा कि अगर जज यशवंत वर्मा खुद से इस्तीफा नहीं देते हैं तो संसद में उनके खिलाफ महाभियोग लाना स्पष्ट विकल्प होगा. संसद का मानसून सत्र जुलाई के दूसरे हफ्ते में शुरू होने की संभावना है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज किसे अपना इस्तीफा सौंपते हैं. 

कैसे हटाए जाते हैं जज

सुप्रीम कोर्ट या फिर हाई कोर्ट के जज को महाभियोग के जरिए हटाया जाता है. यह प्रक्रिया काफी लंबी होती है. इस दौरान अगर लोकसभा के 100 सांसद या फिर राज्यसभा के पचास सांसद जज को हटाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दें तो फिर सदन के अध्यक्ष या सभापति को उसे स्वीकार करना होता है. इसके बाद तीन सदस्यीय समिति इस मामले की जांच करती है और उसकी रिपोर्ट सदन को सौंपी जाती है. अगर रिपोर्ट में पाया जाता है कि मामला बेबुनियाद है तो केस वहीं खत्म हो जाता है. वहीं अगर जज दोषी पाया गया तो दोनों सदनों में इसको लेकर वोटिंग होती है. अगर दोनों सदनों में वोटिंग के जरिए जज को हटाने का प्रस्ताव स्वीकार हो गया तो मामला राष्ट्रपति के पास जाता है और वे जज को हटाने का आदेश देते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट के जज किसे सौंपते हैं इस्तीफा

संविधान के अनुच्छेद 124(4) सर्वोच्च न्यायालय के जज को उसको पद से हटाने की प्रक्रिया के बारे में बात करता है. इसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति को सिर्फ संसद के दोनों सदनों द्वारा अभिभाषण के बाद राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के जज को अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपना होता है. 

हाई कोर्ट के जज किसे देते हैं त्याग पत्र

वहीं अनुच्छेद 217 के अनुसार भारतीय संविधान में हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और पदों की शर्तों से संबंधित होती है. यह बताता है कि उच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और वे 62 साल की उम्र या फिर इससे पहले तक अपने पद पर बने रह सकते हैं, जब तक राष्ट्रपति के द्वारा उनको हटाया नहीं जाता है. हाई कोर्ट के जजों को भी अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को ही सौंपना होता है. 

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