बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर सीधे-सीधे वोट चोरी का आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक और यहां तक की लोकसभा चुनाव में भी वोटों की हेरा फेरी हुई है और यह सब चुनाव आयोग की मिलीभगत से हुआ है. राहुल गांधी ने औरंगाबाद की रैली में सवाल उठाया की सरकार ने सीसीटीवी निगरानी से जुड़ा कानून क्यों बदला और क्यों 2023 में ऐसा प्रावधान किया कि चुनाव आयुक्त के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया जा सकता.
राहुल ने आरोप लगाया कि यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने कराया ताकि चुनाव आयोग पर कोई कार्रवाई न हो सके. इस बीच रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सभी आरोपी को राजनीति से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया राहुल गांधी से 7 दिन के भीतर हालफनामा या माफी मांगने के लिए भी कहा गया.
2023 का कानून क्या कहता है?
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्त (2023) अधिनियम के तहत मुख्य और अन्य चुनाव आयुक्तों को उनके आधिकारिक कामकाज के दौरान किए गए निर्णयों, कार्यों या बयानों के लिए किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा मिलती है. यानी उनके खिलाफ न तो दीवानी और न ही फौजदारी मुकदमेबाजी हो सकती है. इसके अलावा, किसी आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना पद से हटाया नहीं जा सकता.
विपक्ष की महाभियोग की तैयारी
चुनाव आयोग की सफाई से असंतुष्ट विपक्षी दल अब सीईसी ज्ञानेश कुमार के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित कई दलों के नेताओं ने बैठक कर इस दिशा में रणनीति बनाई. विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग जनता के सवालों का जवाब देने के बजाय सत्तारूढ़ दल के पक्ष में काम कर रहा है.
क्या महाभियोग ही एकमात्र रास्ता है
संविधान के अनुच्छेद 324(5)के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह ही हटाया जा सकता है. यानी उनके खिलाफ सीधे केस या एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है. हटाने की प्रक्रिया संसद के जरिए ही संभव है. साधारण चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति हटा सकते हैं लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त को तभी हटाया जा सकता है जब संसद दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करें और राष्ट्रपति अंतिम आदेश जारी करें.
प्रक्रिया क्या है
- मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए संसद का कोई भी सदस्य आरोपों वाला प्रस्ताव ला सकता है
- वहीं लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा अध्यक्ष आरोपों की गंभीरता देखकर तीन जजों की जांच समिति गठित करते हैं.
- इसके बाद जांच में आरोप साबित होने पर प्रस्ताव संसद में लाया जाता है.
- लोकसभा और राज्यसभा दोनों में कुल बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई हिस्से का समर्थन जरूरी है.
- इसके बाद राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का आदेश दे सकते हैं.
किन वजहों से हटाया जा सकता है मुख्य चुनाव आयुक्त
मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल दो आधारों पर हटाया जा सकता है. जिसमें पहले आधार होता है दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार, पक्षपात, संवैधानिक दायित्वों का उल्लंघन या राजनीतिक दल से मिलीभगत होने पर मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया जा सकता है. इसके अलावा दूसरा आधार होता है इन कैपेसिटी, अगर चुनाव आयुक्त गंभीर, शारीरिक या मानसिक बीमारी के कारण काम करने की क्षमता खो देता है ऐसी स्थिति में मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया जा सकता है. वहीं सिर्फ विचारधारा या किसी फैसले से असहमति मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का आधार नहीं हो सकती है.
विपक्ष की संख्या और चुनौती
लोकसभा में इंडिया गठबंधन के पास करीब 235 सांसद है जबकि एनडीए के पास 293 सांसद है. राज्यसभा में भी एनडीए 132 सांसदों के साथ आगे हैं ऐसे में विपक्ष के लिए महाभियोग प्रस्ताव पास करना आसान नहीं होगा क्योंकि इसके लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है.
ये भी पढ़ें-देश की अदालतों में इंसाफ की जंग अधूरी, 50 साल से भी पुराने 2,329 केस अब तक पेंडिंग