चुनाव आयोग समय-समय पर वोटर लिस्ट को अपडेट करता है ताकि उसमें कोई गलती न रहे. इसी प्रक्रिया को SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण कहते हैं. इसी के चलते करीब दो दशकों बाद अब चुनाव आयोग ने फिर से देशभर में SIR शुरू किया है. इसकी शुरुआत बिहार से की गई, जहां लगभग 69 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए, यानी ऐसे नाम जो अब पात्र नहीं थे. जैसे मृतक, डुप्लीकेट या बाहर शिफ्ट हो चुके लोग. इसके बाद बिहार की कुल वोटर संख्या करीब 7.43 करोड़ रह गई. 

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अब चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि यह प्रक्रिया 12 और राज्यों में लागू की जाएगी, जिनमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्य शामिल हैं.  इन राज्यों की पुरानी  वोटर लिस्ट फ्रीज कर दी जाएंगी  यानी अब उनमें बदलाव सिर्फ SIR प्रक्रिया के जरिए ही होंगे. ऐसे में चलिए जानते हैं कि देश में पहली बार SIR कब हुआ था और क्यों इसकी जरूरत होती है. 

क्या होता है SIR?

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SIR का मतलब वोटर लिस्ट की पूरी तरह से गहन जांच और पुनरीक्षण होता है. इसमें चुनाव आयोग के अधिकारी घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी लेते हैं, यह देखते हैं कि कौन लोग पात्र हैं, किसका नाम गलती से छूट गया है, और किनके नाम अब हटाए जाने चाहिए. इस प्रक्रिया के बाद एक नई वोटर लिस्ट तैयार होती है. 

देश में पहली बार SIR कब हुआ था?

भारत में पहला आधिकारिक SIR 2002 से 2004 के बीच किया गया था. यह उस समय एक बहुत बड़ी पहल थी क्योंकि तबतक वोटर लिस्ट में भारी गलतियां पाई जाती थीं. कई राज्यों में पुराने डेटा के कारण लाखों नाम दोहराए गए थे या गलत जगह दर्ज थे. 2003 में बिहार में भी एक बड़ा पुनरीक्षण अभियान चला था. यही वजह है कि अब चुनाव आयोग ने 2025 में नया SIR शुरू किया है. 

क्यों जरूरी होती है SIR?

समय के साथ वोटर लिस्ट में कई प्रकार की गड़बड़ियां हो जाती हैं. कोई व्यक्ति एक ही जगह पर दो बार दर्ज हो जाता है,किसी का नाम पुरानी जगह पर रह जाता है जबकि वह दूसरी जगह शिफ्ट हो गया होता है, कुछ लोगों के नाम गलत स्पेलिंग में होते हैं और कई लोगों का नाम मरने के बाद भी सूची में बना रह जाता है. ऐसी गड़बड़ियों को दूर करने के लिए चुनाव आयोग SIR करता है, ताकि अगली बार जब चुनाव हों, तो वोटर लिस्ट पूरी तरह सटीक और निष्पक्ष हो. 

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