भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को आज भी लौह पुरुष के नाम से याद किया जाता है. हर साल भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है. वहीं इस साल भी लोग भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जन्म तिथि की 150वीं जयंती को विशेष रूप से मनाने की तैयारी में जुटे हैं. सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ. वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सरदार पटेल ने एक बार भारत के ही एक बड़े स्वतंत्रता सेनानी पर प्रॉपर्टी को लेकर मुकदमा दायर कर दिया था, इस पूरे मामले की कहानी बेहद दिलचस्प है और कम लोग ही इससे वाकिफ हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किस स्वतंत्रता सेनानी पर प्रॉपर्टी केस किया था और पूरा मामला क्या था?

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सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किस स्वतंत्रता सेनानी पर किया था केस?

सरदार पटेल ने एक बार भारत के ही बड़े स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस पर प्रॉपर्टी को लेकर मुकदमा दायर कर दिया था. साल 1933 में सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल की तबीयत यूरोप में बिगड़ गई. उस समय सुभाष चंद्र बोस भी उनके साथ थे और उनकी सेवा कर रहे थे. बीमारी के दौरान, सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई ने एक वसीयत लिखी, जिसमें उन्होंने अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा  सुभाष चंद्र बोस के नाम कर दिया. उन्होंने लिखा कि यह धन विदेशों में भारत की आजादी की मुहिम के लिए यूज किया जाए. यह बात जब वल्लभभाई पटेल को पता चली, तो उन्होंने इस वसीयत पर सवाल खड़े कर दिए. उनका कहना था कि इस वसीयत में किसी डॉक्टर के हस्ताक्षर नहीं हैं, सारे गवाह सुभाष बाबू के बंगाल के हैं, जबकि उस समय जेनेवा में कांग्रेस के कई नेता मौजूद थे, क्या यह सही है कि एक बीमार व्यक्ति इतनी बड़ी वसीयत किसी के नाम कर दे, जब वह होश में भी ठीक से न हो. इन सब सवालों के चलते सरदार पटेल ने बॉम्बे हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया और कहा कि यह वसीयत वैध नहीं है. 

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सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रॉपर्टी केस कोर्ट का फैसला 

बॉम्बे हाई कोर्ट में इस केस की सुनवाई जस्टिस बी. जे. वाडिया की अदालत में हुई. वल्लभभाई पटेल खुद एक अनुभवी वकील थे, इसलिए उन्होंने मामले को बेहद मजबूती से कोर्ट में रखा. कोर्ट ने फैसला सरदार पटेल के पक्ष में दिया, कहा गया कि कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते विट्ठल भाई पटेल की संपत्ति वल्लभभाई को मिलनी चाहिए, न कि किसी तीसरे व्यक्ति को भले ही वो कोई स्वतंत्रता सेनानी ही क्यों न हो. बाद में सुभाष चंद्र बोस ने इस फैसले को फेडरल कोर्ट में भी चुनौती दी, लेकिन वहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वहीं रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरदार पटेल ने वह सारी संपत्ति विट्ठल भाई पटेल के नाम से एक ट्रस्ट में डाल दी, जिसका मकसद समाज की भलाई, शिक्षा और जनकल्याण था.  इस ट्रस्ट ने लंबे समय तक समाज के लिए काम किया है. 

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