Subrata Roy Saharasri: भारत के मशहूर बिजनेसमैन और सहारा इंडिया परिवार के मालिक सुब्रत रॉय (Subrata Roy) का 14 नवंबर को निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने मुंबई के निजी हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली. भारत के एक बड़े कारोबारियों में उनकी गिनती होती थी. वह बॉलीवुड, राजनीति और खेल जगत में भी काफी मशहूर थे. एक समय में सहारा में नौकरी सरकारी नौकरी की तरह मानी जाती थी. लोग इस कंपनी के साथ जुड़ने के लिए सपने देखा करते थे, लेकिन एक समय बाद रॉय निवेशकों का पैसा ना लौटाने को लेकर कानूनी विवादों में फंस गए, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा. यह वही व्यक्ति थे, जिन्होंने कभी नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की थी. बाद में एक कंपनी खोला और फिर भारत के टॉप बिजनेसमैन बन गए. रॉय के इस सफर में चिट फंड ने बड़ा रोल प्ले किया. आज की स्टोरी में हम इसके बारे मे जानने वाले हैं, जिसने सुब्रत रॉय को सहाराश्री बना दिया था. 


कैसे शुरू हुई जर्नी?


रॉय का जन्म बिहार के अररिया जिले में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा कोलकाता में पूरी हुई. उसके बाद वह गोरखपुर आ गए, जहां से उन्होंने सरकारी टेक्निकल इंस्टिट्यूट से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कारोबार में किस्मत आजमाना शुरू कर दिया. उन्होंने नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की. फिर साल 1978 में सहारा समूह की नींव रखी. इसमें सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने सहारा फाइनेंस की शुरुआत की. सहारा फाइनेंस में इन्हें सहारा श्री बनने में एक बड़ा योगदान निभाया. 1990 में सुब्रत राय लखनऊ चले आए ,जहां उन्होंने अपने कंपनी का नाम सहारा इंडिया परिवार रख दिया. उसके बाद इस कंपनी ने रियल एस्टेट, सिनेमा, मीडिया से लेकर कई दूसरे कारोबार में अपनी किस्मत आजमाई. सभी में सफलता मिलती चली गई. 90 के दशक में इनकी नेताओं से लेकर बॉलीवुड सेलिब्रिटी तक सब में चर्चा होने लगी.


क्या था चिट फंड?


चिट फंड एक वित्तीय साधन है, जिसका उपयोग उधार लेने और सेविंग दोनों पहलुओं में किया जाता है. इसमें कुछ व्यक्ति नियमित अंतराल पर एक निश्चित राशि इकट्ठा करते हैं और जमा करते हैं. यह इस डील या समझौते के साथ किया जाता है कि समूह के एक सदस्य को प्रत्येक अंतराल के दौरान एकत्रित धन की कुल राशि प्राप्त होगी. यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक प्रत्येक सदस्य को एकत्रित धन का अपना हिस्सा प्राप्त नहीं हो जाता.


चिट फंड का सिस्टम कैसे काम करता है?


चिट फंड का मतलब समझने के बाद इसकी कार्यप्रणाली को समझना जरूरी है. चिट-फंड योजना के एक भाग के रूप में समान संख्या में सदस्यों के साथ, आपको एक निश्चित अवधि के दौरान एक निश्चित राशि जमा करनी होती है. पैसे एकत्र होने के बाद नीलामी या लॉटरी सिस्टम के माध्यम से एक व्यक्ति को चुना जाता है, और पैसा उस व्यक्ति को दे दिया जाता है.


चिट फंड एक रिवर्स नीलामी सिस्टम का उपयोग करते हैं, जिसमें विजेता बोली लगाने वाला प्रत्येक अंतराल के लिए चिट फंड ऑपरेटर को कमीशन शुल्क के रूप में एकत्रित धन का एक पूर्व निर्धारित अनुपात का भुगतान करता है. कमीशन और अन्य खर्चों में कटौती के बाद शेष राशि अन्य सदस्यों को लाभांश के रूप में भुगतान की जाती है.


अपने हिस्से का दावा करने के बाद भी विजेता बोली लगाने वाला फंड में योगदान जारी रखने के लिए बाध्य है. चिट फंड चक्र आम तौर पर निवेशकों की संख्या के बराबर लंबा होता है, जिसमें सभी सदस्यों का मासिक योगदान होता है. प्रत्येक अंतराल के अंत में एक खुली नीलामी आयोजित की जाती है, जिससे सदस्यों को एकत्रित धन पर बोली लगाने की अनुमति मिलती है. सबसे कम बोली लगाने वाले को विजेता घोषित किया जाता है और वह एकत्रित धनराशि का हकदार होता है.


उदाहरण से समझिए चिट फंड का सिस्टम


सोचिए कि 20 व्यक्ति मिलकर एक समूह बनाते हैं. जिसमें यह तय किया जाता है कि प्रत्येक सदस्य महीने में 1,000 रुपये योगदान करेगा, और यह प्रक्रिया अगले 20 महीनों तक जारी रहेगी (समूह की संख्या के बराबर). इस समूह में एक आयोजक होगा, जिसकी जिम्मेदारी होगी बैठकें आयोजित करना, सदस्यों से धन जमा करना, और अन्य संबंधित प्रक्रियाएं संचालित करना.


इसलिए, प्रति महीने ये सभी 20 लोग एक विशेष दिन पर मिलते हैं और 1,000 रुपये जमा करते हैं. इससे हर महीने कुल 20,000 रुपये एकत्र होते हैं. अब सवाल उठता है कि ये पैसे कौन लेगा. स्वाभाविक रूप से, कुछ ही लोग होंगे जिन्हें बड़ी रकम की आवश्यकता होगी, जैसे की बड़े खर्च, वित्तीय कठिनाइयां, व्यापार समस्याएं, या बेटी की शादी आदि. उन सभी में से जिन्हें पैसों की आवश्यकता है, कोई ना कोई बोली लगाएगा. यह इस पर निर्भर करती है कि व्यक्ति कितना बेचैन है. जो व्यक्ति सबसे कम राशि की बोली लगाता है, वह जीतता है. मान लीजिए कि 18,000, 17,000 और 16,000 रुपये की बोली लगाने वाले कुल 3 लोगों में से जो सबसे कम बोली लगाता है, वह जीतता है. इस मामले में, जीतने वाले व्यक्ति वह है जिन्होंने 16,000 रुपये की बोली लगाई है.


इसके साथ ही, "आयोजक शुल्क" भी होगा जो कुल राशि का लगभग 5% (मानक) है, इसलिए इस मामले में यह 20,000 रुपये का 5% है, जो 1,000 रुपये हैं. इसलिए इस विजेता को मिलने वाले कुल 16,000 में से 1,000 रुपये काटे जाएंगे और विजेता को केवल 15,000 रुपये मिलेंगे, 1,000 रुपये आयोजक शुल्क होंगे और 4,000 रुपये का लाभ होगा, जिसे प्रत्येक सदस्य द्वारा साझा किया जाएगा (सभी 20 लोग). इससे प्रति व्यक्ति 200 रुपये होंगे, और इसे सभी 20 सदस्यों को वापस दे दिया जाएगा. तो यहां आप देख सकते हैं कि मुख्य विजेता को पैसे पाने की सख्त जरूरत थी और दूसरों को इससे फायदा होने की वजह से बड़ा नुकसान हुआ. इस मामले में प्रत्येक व्यक्ति ने वास्तव में केवल 800 का भुगतान किया, 1,000 का नहीं (उन्हें 200 वापस मिले). ध्यान दें कि जब कोई व्यक्ति बोली लगाने के बाद पैसे ले लेता है तो अगली बार से वह बोली नहीं लगा सकता, केवल 19 लोग ही बोली लगाने के पात्र होंगे. यह प्रकिया आगे चलती रहेगी.


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