इस बार पंजाब में आई बाढ़ ने इस राज्य को दशकों पीछे धकेल दिया है. इसे पिछले 40 सालों की सबसे भीषण बाढ़ माना जा रहा है, जिसने 1988 की तबाही को भी पीछे छोड़ दिया है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अब तक 1300 से ज्यादा गांव पानी में डूब चुके हैं, लाखों लोग बेघर हो गए हैं और हजारों एकड़ में खड़ी फसल बर्बाद हो गई है. सड़कों, पुलों और घरों को भारी नुकसान पहुंचा है. सवाल यह है कि आखिर इस बार बाढ़ क्यों आई और इतना विनाशकारी क्यों साबित हुई?

बाढ़ का आगाज और बारिश की मार

बाढ़ की शुरुआत अगस्त 2025 को हुई थी, जब हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ऊपरी इलाकों में मूसलाधार बारिश हुई. मानसून इतना तेज था कि सतलुज, ब्यास और रावी जैसी नदियां उफान पर आ गईं. पोंग डैम, भाखड़ा डैम और रंजीत सागर डैम तेजी से भर गए और सुरक्षा कारणों से इनसे अतिरिक्त पानी छोड़ना पड़ा. इसने निचले इलाकों में तबाही और बढ़ा दी.

आखिर क्या है बाढ़ की असली वजह?

आंकड़े बताते हैं कि नुकसान का लगभग 70% हिस्सा भारी बारिश की वजह से हुआ, जबकि 30% डैम से छोड़े गए पानी की वजह से. हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में हुई बारिश ने नदियों के कैचमेंट एरिया भर दिए. नदियां 2-4 लाख क्यूसेक पानी लेकर बहने लगीं, जो खतरे के स्तर से काफी ऊपर था. क्लाइमेट चेंज की वजह से मानसून का पैटर्न भी बदल चुका है, जिससे बारिश अब अचानक और अत्यधिक होती है. 

इंसानी लापरवाही भी बड़ी वजह

विशेषज्ञों की मानें तो बाढ़ सिर्फ प्राकृतिक कारणों से नहीं आती, बल्कि इंसानी गलतियां इसे और खतरनाक बना देती हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो पंजाब में नालों और नहरों की सफाई सालों से ठीक से नहीं हो रही है. नदियों में सिल्ट जमी हुई है, जिससे पानी का बहाव रुक जाता है. कई तटबंध और बांध जर्जर हालत में हैं और समय पर उनकी मरम्मत नहीं हुई.

इसके अलावा, अवैध खनन, जंगलों की कटाई और नदी किनारे अनियंत्रित निर्माण भी बाढ़ का खतरा बढ़ाते हैं. खेती, सड़क और रेलवे ट्रैक की वजह से पानी का प्राकृतिक रास्ता रुक गया है. जल निकासी की व्यवस्था कमजोर है, जिसकी वजह से पानी दिनों तक भरा रहता है और गांव डूब जाते हैं. अगर समय पर सुरक्षित तरीके से प्रबंधन किया गया होता तो शायद आज यह हालत न होती.

यह भी पढ़ें: मैग्नेटिक हिल से हूवर डैम तक, यहां बदल जाते हैं गुरुत्वाकर्षण के नियम