ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बीच पर्दे के पीछे रस्साकशी बढ़ती जा रही है. पाकिस्तान की राजनीति पर करीब से नजर रखने वालों का कहना है कि इस बात के संकेत तब मिले, जब बिलावल भुट्टो ने हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को भारत के हवाले करने की बात कही.
जानकारों का कहना है कि आसिम मुनीर को अमेरिका का सपोर्ट मिल चुका है और वह पिछले सेनाध्यक्षों की तरह तख्तापलट कर आसिफ अली जरदारी को पद से हटाकर खुद राष्ट्रपति बन सकते हैं. इतना ही नहीं, अगर जरूरत पड़ी तो मुनीर शहबाज शरीफ को भी प्रधानमंत्री पद से हटाकर पाकिस्तान का पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले सकते हैं. पाकिस्तान से आ रहीं इस तरह की खबरों के बीच चलिए जानते हैं कि पाकिस्तान में इससे पहले तख्तापलट कब-कब हुआ और किन सेनाध्यक्षों ने लोकतंत्र को अपने बूट तले रौंदा?
क्या होता है तख्तापलट?
सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि तख्तापलट का इतिहास नया नहीं है. यह शब्द पहली बार 19वीं सदी में इस्तेमाल हुआ था, जब कई देशों में तख्तापलट की घटनाएं देखने को मिली थीं. तख्तापलट दो तरह से होता है, एक सैन्य तख्तापलट और दूसरा राजनीतिक तख्तापलट. जब सेना अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत करके देश का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेती है तो उसे सैन्य तख्तापलट कहा जाता है, वहीं जब राजनीतिक साजिशों के चलते एक चुनी हुई सरकार को गिराया जाता है तो उसे राजनीतिक तख्तापलट कहा जाता है.
पाकिस्तान में रहा है तख्तापलट का पुराना इतिहास
भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान कई बार राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हुआ है और यहां कई बाद सेना ने एक चुनी हुई सरकार को गिराकर खुद के हाथ में कंट्रो लिया है. यहां पहली बार तख्तापलट की घटना 1953-54 में देखने को मिली थी, जब गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद ने प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद 1958 में भी ऐसा हुआ, जब राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर अली मिर्जा ने संविधान सभा और फिरोज खान नून की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद 1977 में सेना प्रमुख जियाउल हक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार गिराई थी. वहीं 1999 में सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ की सरकार गिराकर पाकिस्तान में तख्तापलट किया था.
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