सच में होता है टाइम ट्रैवल, क्या भविष्य से आ सकता है पृथ्वी पर कोई इंसान? जानिए क्या कहता है साइंस
टाइम ट्रैवेल या समय यात्रा से संबंधित शुरुआती बातें 1895 में प्रकाशित किए गए द टाइम मशीन नॉवेल में जानने के लिए मिलती हैं. साहित्य और सिनेमा के क्षेत्र में टाइम ट्रैवेल वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है.
इसी सिद्धांत की व्याख्या महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने की थी. उन्होंने ही करीब 109 साल पहले दुनिया को अपनी सापेक्षता के सिद्धांत से परिचित कराया था.
यह आधुनिक फिजिक्स के आधारभूत सिद्धांतों में से एक है. आइंस्टीन का सिद्धांत कहता है कि टाइम और स्पेस एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और उनका यह भी कहना है कि ब्रह्मांड की स्पीड का एक ही दायरा है.
ब्रह्मांड की कोई भी वस्तु प्रकाश की गति (299,792,458 मीटर/सेकेंड) से ज्यादा तेज नहीं चल सकती है. कहने का मतलब है कि अगर कोई जितनी तेजी से ट्रैवेल करेगा, उसके लिए समय उतना ही धीमा हो जाएगा.
वैज्ञानिकों ने कई प्रयोगों के जरिए इसे साबित भी किया है. यह प्रयोग दो एटॉमिक घड़ियों के जरिए जुड़ा हुआ है. एक परमाणु घड़ी को धरती पर रखा गया और दूसरी को हवा में हवाई जहाज में उड़ाया गया था.
ये घड़ी उसी दिशा में उड़ाई गई, जिस दिशा में धरती घूमती है. इसके बाद वैज्ञानिकों ने दोनों परमाणु घड़ियों की जब तुलना की तो विमान में सवार घड़ी धरती पर मौजूद घड़ी से पीछे चल रही थी.
इस प्रयोग के बाद यह बात साफ हो गई थी, अगर हम अपनी स्पीड को बढ़ाते हैं तो हम समय से आगे बढ़ सकते हैं यानि कि भविष्य में जा सकते हैं, हालांकि अभी तो विज्ञान उतना तरक्की नहीं कर सका है, लेकिन शायद भविष्य में यह संभव हो.