नेपाल में सोशल मीडिया बैन को लेकर लाखों युवा सड़कों पर उतर आए हैं. काठमांडू में सुबह से ही संसद भवन और उसके आसपास की सड़कों पर युवा प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ जुटी. सोशल मीडिया पर बैन हटाने की मांग से शुरू हुआ युवाओं का प्रदर्शन अब मौजूदा ओली सरकार की कुर्सी तक जा पहुंचा है. हालांकि सोशल मीडिया पर लगा बैन हटा लिया गया है लेकिन प्रदर्शनकारी अब ओली के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. लेकिन नेपाल से पहले भी भारत के दो पड़ोसी देशों में युवाओं ने सत्ता को उखाड़ फेंका था चलिए जानते हैं उस घटना के बारे में.

 श्रीलंका की घटनासबसे पहले बात करते हैं श्रीलंका की. साल 2022 में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चरम संकट में थी. ईंधन, दवा, भोजन की भारी किल्लत थी. श्रीलंका ऋणों के बोझ तले दबा था लोगों का मानना था कि राजपक्षे परिवार की भ्रष्ट शासन ने जनता को तंग कर दिया. बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से परेशान छात्र, नौजवान और मध्यम वर्ग सड़कों पर उतरे. वे राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय और संसद के बाहर डेरा डाले रहे. युवाओं ने 'गोटा गो गोटा' यानी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे सत्ता छोड़ो के नारे लगाए. जुलाई 2022 तक आंदोलन इतना उफान मार गया कि गोटाबाया को देश छोड़कर भागना पड़ा.  बांग्लादेश में क्या हुआ था भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश भी 2024 में इसी तरह की आग में जल उठा था. शेख हसीना की 15 साल पुरानी सरकार पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और दमन के आरोप थे. जुलाई 2024 में सरकारी नौकरियों में 30% कोटा प्रणाली के खिलाफ छात्र आंदोलन शुरू हुआ. जल्दी ही यह आंदोलन व्यापक हो गया. महंगाई, बेरोजगारी, पुलिस दमन के खिलाफ ढाका की सड़कों पर लाखों युवा उतरे. पुलिस ने गोली चलाई जिसमें कई लोग मारे गए. आंदोलन और उग्र हो गया देखते ही देखते आरक्षण विरोधी आंदोलन सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया. जिसके बाद अगस्त 2024 में हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़कर भागना पड़ा. इसके बाद बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बनी. इसे भी पढ़ें-कितने अमीर हैं नेपाल के पीएम केपी ओली, जिन्हें स्विस बैंक से हर साल मिलता है 1.87 करोड़ का ब्याज?