पहलगाम हमले के बाद भारत ने जैसे ही सैन्य कार्रवाई शुरू की, दो देश पाकिस्तान के समर्थन में आ गए. पहला देश था चीन और दूसरा तुर्किये. चीन और पाकिस्तान की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है, लेकिन तुर्किये ने जिस तरह से पाकिस्तान का साथ दिया, वह चौंकाने वाला था. तुर्किये ने इस सैन्य संघर्ष में न केवल पाकिस्तान का समर्थन किया, बल्कि उसे गोला-बारूद भी दिए. यहां तक कि अपना जंगी जहाज भी पाकिस्तान पहुंचा दिया था. इस घटना के बाद भारत में तुर्किये का विरोध शुरू हो गया और बड़ी संख्या में लोग इसके बायकॉट पर उतर आए.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब तुर्किये ने भारत के खिलाफ इस तरह की साजिश की है. अगर इतिहास उठाकर देखें तो तुर्किये पहले भी भारत के खिलाफ रहा है और इसकी जड़ें मुगल काल से जुड़ी हुई हैं. भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना में भी कहीं न कहीं तुर्की का कनेक्शन था. चलिए जानते हैं इसके बारे में...
बाबर का तुर्की कनेक्शन
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करने वाले बाबर का सीधा कनेक्शन तुर्की से ही था. दरअसल, बाबर तैमूर और चंगेज खान की वंशावली से था. बाबर का पिता तैमूर वंशावली से था, जो तुर्क मूल का सेनापति था, वहीं उसकी मां का रिश्ता चंगेज खान के खानदान से रहा, जो मंगोल शासक था. इस तरह मुगल शासक बाबर तुर्क व मंगोल, दोनों वंशावलियों से जुड़ा रहा है.
धार्मिक, राजनीतिक से लेकर सैन्य रिश्ता
जानकारी के मुताबिक, तुर्क साम्राज्य यानी आटोमन साम्राज्य का रिश्ता शुरुआत में मुगलों से बहुत ही मामूली रहा, लेकिन जैसे-जैसे आटोमन साम्राज्य की जड़ें गहरी होती गईं, मुगलों से उनके धार्मिक और राजनीतिक रिश्ते भी बनते गए. यहां तक कि एक समय मुगलों ने आटोमन साम्राज्य के शासकों को खलीफा भी मान लिया था. मुगलों के शासन काल में तुर्क संस्कृति का भी असर देखने को मिलता है. इस दौरान बनाए गए गुंबद, मीनारों की वास्तुकला पर तुर्की कला का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है.
मुगल सेना में था तुर्की का प्रभाव
मुगल सेना में भी तुर्की का प्रभाव देखने को मिलता है. खासतौर पर घुड़सवार सेना की अवधारणा भी तुर्की की ही थी और पानीपत की पहली लड़ाई (1526) में मुगलों ने तुर्की की रणनीति ही अपनाई थी. यहां तक कि बाबर ने तुर्की से तोपें भी मंगवाई थी, जिनकी मदद से बाबर ने कई लड़ाइयां जीतीं. यह कहा जा सकता है कि तुर्की की सैन्य तकनीक की मदद से मुगल काफी मजबूत हो गए थे.
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