भारत एक ऐसा देश है जहां अनेक धर्म, भाषाएं, संस्कृतियां और परंपराएं साथ-साथ बढ़ती हैं. यही विविधता भारत की सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन इस विविधता को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि समाज के हर वर्ग को समान अधिकार और सुरक्षा मिले, खासकर उन समुदायों को जो संख्या में कम हैं, जिन्हें हम अल्पसंख्यक कहते हैं.

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अल्पसंख्यक समुदायों की अपनी अलग पहचान, भाषा, संस्कृति और धार्मिक परंपराएं होती हैं. अगर इन्हें संरक्षण न मिले, तो समय के साथ ये परंपराएं कमजोर हो सकती हैं या समाप्त भी हो सकती हैं. इसी कारण भारत के संविधान निर्माताओं ने आजादी के बाद ही अल्पसंख्यकों के अधिकारों को विशेष महत्व दिया. इसी सोच के तहत भारत में हर साल 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है. यह दिन हमें याद दिलाता है कि देश अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत में यह दिवस 2013 से मनाया जा रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र की 18 दिसंबर 1992 की घोषणा से प्रेरित है. ऐसे में आइए जानते हैं कि अल्पसंख्यकों को सबसे पहले कौन-सा अधिकार मिला था और इससे उन्हें क्या फायदा हुआ. 

अल्पसंख्यकों को सबसे पहला अधिकार कौन-सा मिला?

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भारत में अल्पसंख्यकों को जो सबसे पहला और सबसे जरूरी अधिकार मिला, वह संस्कृति और शिक्षा से जुड़े अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 में दिए गए हैं. इन अधिकारों का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान, भाषा, संस्कृति और शिक्षा को सुरक्षित रखना है.  अनुच्छेद 29 क्या है?

अनुच्छेद 29(1) के अनुसार, अगर किसी समुदाय की अपनी अलग भाषा, लिपि या संस्कृति है, तो उसे उसे बचाने और आगे बढ़ने का पूरा अधिकार है. इससे अल्पसंख्यकों को ये फायदा हुआ कि वो अपनी भाषा और परंपराओं को खुलकर अपना सके, उनकी सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित रही, किसी भी तरह के भेदभाव से उन्हें संरक्षण मिला और वह अपने त्यौहार, रीति-रिवाज और परंपराएं बिना डर के निभा सके. 

अनुच्छेद 30 क्या है?

अनुच्छेद 30(1) के अनुसार, धर्म या भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यकों को यह अधिकार है कि वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान खोल सकें और उनका संचालन कर सकें. अनुच्छेद 30(2) यह भी कहता है कि सरकार किसी शैक्षणिक संस्था के साथ सिर्फ इस कारण भेदभाव नहीं कर सकती कि वह किसी अल्पसंख्यक समुदाय के तहत चलाई जा रही है. इससे अल्पसंख्यकों को ये फायदा मिला कि वह अपने बच्चों को अपनी संस्कृति और मूल्यों के अनुसार शिक्षा दे सके, अल्पसंख्यक समुदायों में शिक्षा का स्तर बढ़ा, मदरसे, मिशनरी स्कूल, सिख और बौद्ध शिक्षण संस्थान विकसित हुए और समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के अवसर मिले.  इन अधिकारों से  उन्हें क्या हुआ फायदा?

इन शुरुआती अधिकारों ने अल्पसंख्यकों को कई तरह से सशक्त किया और उन्हें लगा कि संविधान उनकी पहचान के साथ खड़ा है. साथ ही उनकी शैक्षिक प्रगति हुई. विशेष योजनाओं और संस्थानों से पढ़ाई के अवसर मिले.  भाषा, धर्म और परंपराएं सुरक्षित रहें, इसके अलावा समानता का एहसास हुआ. वह खुद को देश का बराबर का नागरिक महसूस करने लगे. 

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