अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भारत दो हिस्सों में बंट गया. एक हिस्सा भारत बना और दूसरा पाकिस्तान. जिन्ना और गांधी जी के राजनीतिक करियर की शुरुआत भी एक ही वक्त हुई थी. दोनों भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना चाहते थे. ऐसे में आइये जानते हैं कि विभाजन के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दो दिग्गज नेताओं महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना के बीच रिश्ते कैसे थे. दोनों एक दूसरे के बारे में क्या सोचते थे आइये जानते हैं.

भारत को लेकर गांधी जी के विचार

दोनों नेताओं ने भारत के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनके दृष्टिकोण और लक्ष्य अक्सर एक-दूसरे से टकराते थे. महात्मा गांधी जिन्हें भारत का ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है, अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलते हुए एक अखंड भारत के समर्थक थे. उनका मानना था कि भारत की विविधता हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी को एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ना चाहिए. गांधी का दृष्टिकोण समावेशी था और वे धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के सख्त खिलाफ थे.

जिन्ना धर्म के आधार पर चाहते थे अलग राष्ट्र

दूसरी ओर मोहम्मद अली जिन्ना जिन्हें पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है. मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा के लिए एक अलग राष्ट्र की जरूरत समझते थे. 1920 के दशक में गांधी के अहिंसक आंदोलनों जैसे असहयोग आंदोलन को लेकर जिन्ना का दृष्टिकोण अलग था. 1930 के दशक तक दोनों के बीच मतभेद गहरे हो गए. गांधी का जोर ग्रामीण भारत और सामाजिक सुधारों पर था, जबकि जिन्ना शहरी मुस्लिम मध्यम वर्ग के हितों को प्राथमिकता देते थे. 1940 में जब जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान की मांग रखी गांधी ने इसे देश के लिए हानिकारक माना. गांधी ने जिन्ना को कई बार पत्र लिखे और 1944 में उनकी मुलाकात भी हुई. गांधी ने एकजुट भारत का प्रस्ताव रखा लेकिन जिन्ना ने इसे अस्वीकार कर दिया.

गांधी जी की मौत पर क्या बोले जिन्ना

गांधी जी की मृत्यु पर पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था 'गांधी के ऊपर हुए बेहद कायराना हमले के बारे में जानकर हैरान हूं. इस हमले में उनकी मौत हो गई. हमारे राजनैतिक विचारों में चाहे जितना विरोध रहा हो लेकिन ये सच है कि वो हिंदू समुदाय में पैदा होने वाले महानतम शख्सियतों में से एक थे. उन्हें अपने लोगों का पूरा सम्मान और विश्वास मिला हुआ था. यह भारत के लिए बहुत बड़ी क्षति  है. गांधी की हत्या से भारत को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती'. 

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