भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सामने पहली बार 'मुर्दाबाद' के नारे लगे और उन्होंने अपनी प्रार्थना सभा अधूरी छोड़कर चले गए. चलिए इस घटना के बारे में जानते हैं कि ऐसा कब और कहां हुआ था. प्रार्थना सभा को संबोधित करने वाले थे गांधी जी
यह घटना 12 जनवरी 1948 की है, जब दिल्ली के बिड़ला भवन में महात्मा गांधी अपनी नियमित प्रार्थना सभा के लिए एकत्र हुए थे. देश उस समय स्वतंत्रता के बाद के उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रहा था. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे, शरणार्थियों का पलायन और सामाजिक तनाव अपने चरम पर था. गांधी जी इस प्रार्थना सभा में लोगों को संबोधित करने वाले थे. लेकिन उस दिन कुछ अलग हुआ. आइये जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ कि गांधी जी प्रार्थना सभा छोड़कर चले गए. गांधी जी के खिलाफ लगे मुर्दाबाद के नारे
बता दें कि उस दौरान विभाजन और उससे जुड़ी घटनाओं से नाराज लोगों ने गांधी जी के खिलाफ 'मुर्दाबाद' के नारे लगाए. यह पहली बार था जब बापू को इस तरह के विरोध का सामना करना पड़ा. ये नारे गांधी जी के लिए गहरा आघात थे. वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपना जीवन देश की एकता और अहिंसा के लिए समर्पित कर दिया था. इन नारों ने उनके दिल को गहरी ठेस पहुंचाई. गांधी जी, जो हमेशा शांति और संयम के प्रतीक रहे, उस दिन अपनी प्रार्थना पूरी किए बिना ही सभा छोड़कर चले गए.
इस घटना ने डाला गहरा प्रभाव
इस घटना ने उनके अंतर्मन पर गहरा प्रभाव डाला, क्योंकि वह हमेशा सभी धर्मों और समुदायों को एकजुट करने की कोशिश करते थे. यह घटना उस समय के सामाजिक तनाव को भी उजागर करती है. विभाजन के बाद देश में हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ गया था और कुछ लोग गांधी जी की अहिंसक नीतियों और उनके सांप्रदायिक सौहार्द के प्रयासों से असहमत थे.
30 जनवरी को हो गई हत्या
गांधी जी का मानना था कि प्रेम और करुणा ही हिंसा का जवाब हो सकती है, लेकिन इन नारों ने उनके इस विश्वास को चुनौती दी. फिर भी, गांधी जी ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना जारी रखा. 18 दिन बाद, 30 जनवरी 1948 को, नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या कर दी. यह देश के लिए एक अपूरणीय क्षति थी. लेकिन गांधी जी के विचार और उनकी शिक्षाएं आज भी जीवित हैं.
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