होमेंद्र देशमुख


इस विशालकाय वृक्ष का नाम है खुरसानी इमली है और इसका बोटेनिकल नाम है Adansonia Digitata जिसे कुछ लोग वाओआब और कल्प वृक्ष भी लिखते हैं.
वैसे तो इस प्रजाति को ईरान के खुरसान से आयातित माना जाता है. लेकिन सवाल ये है  कि भारत में यह आया कैसे? तो इसका एक जवाब यह है कि अलाउद्दीन खिलजी को 15वीं शताब्दी में खुरसान या खुरासान के सुल्तान ने ये पौधे भेंट किए थे. पौधे कई जगह लगे पर आबोहवा के हिसाब से मांडू में ही बहुत मात्रा में ये पेड़ पले-बढ़े. इस पेड़ पर लगने वाले बड़े फल को सूखने पर तोड़ते हैं. शरीर में पानी की कमी से रोकने से लेकर यह कैल्सियम का अच्छा स्रोत है. बताया जाता है कि इसके फल का 1 किलो पाउडर 40 यूरो तक में बिकता है.


पहचान और नामकरण


18वीं शताब्दी में भारत आए  वनस्पति विज्ञानी एडरसन ने इस पर शोध किया और उन्ही के सम्मान में इसका नामकरण Adansonia Digitata किया गया. यह वृक्ष युगांडा आस्ट्रेलिया अफ्रीका केन्या तथा ईरान में पाया जाता है. जैसा कि इमली नाम है यह भी इमली की तरह खट्टा फल देता है, लेकिन इसका फल सेमल के फल के शेप में बहुत बड़े बड़े होते हैं किसी पेड़ में बेल की तरह गोल फल भी लगते हैं. मध्य प्रदेश के मांडव में 200 से ज्यादा तथा इन्दौर के IIM परिसर में इसके तीन विशालकाय वृक्ष सालों से है.


मध्य प्रदेश के ही ओरछा में इसके एक पेड़, अन्य राज्यों में ठाणे ( मुम्बई), रांची, लखनऊ, प्रयागराज के झूंसी में भी इसके विशाल पेड़ों की जानकारी मिली है. गुजरात में इसे चोरआंबलो और बड़े सम्मान से रूखड़ोदादा के नाम से जाना जाता है. इसकी विशालता और तने की मोटाई के अंदर खोल होता है. गुजरात के लोककथाओं में इस वृक्ष के खोल में चोर छुपने तथा चोरों द्वारा चोरी के माल छुपाने का उल्लेख मिलता है शायद इसी लिए वहां इसे चोरआंबलो कहा गया होगा.


ताप्ती बीजांकुर बीज बैंक चलाने वाले  गुजरात के गोंडलिया नितेश इसके बीज से नए पौध तैयार करने कर इसे बचाए रखने का अभियान चला रहे हैं. उन्होंने गुजरात के कई क्षेत्रों के अलावा राजस्थान जैसे राज्यों में भी केवल कुरियर खर्च से उन्होंने इसके पौध और बीज भेजा है. उनका दावा है कि गुजरात में अब इसकी अच्छी संख्या होने लगी है. इसके पेड़ विशाल होते हैं और जिसकी उम्र 500 साल से भी ज्यादा माना जाता है. मांडव के सरकारी अतिथि गृह परिसर में लगे एक पेड़ की परिधि तो 10 मीटर की है , जो एक रिकार्ड है.


वहीं प्रयागराज के झूंसी में स्थित एक पेड़ को सबसे पुराना के नाम से चर्चा है. खास बात यह है कि यदि इसके बड़े पेड़ के ठूंठ को जड़ सहित कहीं रोप दिया जाए तो वह दोबारा पनप जाता है. मांडव (मांडू) मध्य प्रदेश में स्थानीय दुकानदार पर्यटकों को इसे बेचकर आजीविका भी चलाते हैं. हैदराबाद के एक बोटेनिकल गार्डन ने मांडव से कुछ पेड़ काटकर हैदराबाद ले जाने की वन विभाग से अनुमति ली है जिसका मांडव के निवासी विरोध भी कर रहे हैं. वर्तमान में कुछ पेड़ों को काट कर हैदराबाद ले जाया गया है. मध्य प्रदेश में इसका होना गौरव की बात है. 


पेशे से वकील और जैव विविधता पर काम करने वाली संस्था 'कमान फाउंडेशन' के डायरेक्टर रेवती रमन सिंह राजूखेड़ी ने मांडू से इसे खत्म करने की साजिश और यहां के बायोडिवर्सिटी के लिए जरूरी बताया वे खुरसानी इमली के पेड़ों को बचाने की लड़ाई में आगे आए हैं. मई के महीने में यहां मिडिया की खबरें बनी जिसे हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया. श्री सिंह ने बताया कि वे हाई कोर्ट में एक पक्षकार बन इन वृक्षों को मांडू में यथावत बचाए रखने और उसे यहां से ले काटकर ले जाने की अनुमति देने वालों पर कार्यवाही करने की मांग करने वाले हैं.


बहरहाल इस ऐतिहासिक किस्सों कहावतों और औषधीय गुणों वाले खुरसानी इमली को धार कलेक्टर द्वारा 11 मई को जारी एक आदेश के तहत इस प्रजाति के मांडू में निजी या सार्वजनिक भूमि पर लगे किसी भी पेड़ को मांडू का ऐतिहासिक धरोहर और दुर्लभ जैव संसाधन मान्यता के मान्य कर जैव विविधता एक्ट 2002 के अनुसार इसके काटने की परमीशन किसी भी आधिकारी के द्वारा परमीशन नही देना तथा अभिरक्षा एवं इसके संरक्षण हेतु स्थानीय जैव विविधता समिति गठन करने कार्यवाही प्रारंभ की जा रही है.  यदि आपके शहर या जानकारी में भी इस तरह की प्रजाति का यह पेड़ है तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करें.


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