सोशल मीडिया पोस्ट हो या सार्वजनिक मंच से दिया गया बयान, एक वाक्य आपकी पहचान ही नहीं, आपकी आजादी भी छीन सकता है. देश में हेट स्पीच को लेकर कानून पहले से मौजूद हैं, लेकिन अब कुछ राज्य इन्हें और सख्त बनाने की राह पर हैं. सवाल यही है कि दूसरे धर्म का अपमान करने पर कहां सबसे कड़ी सजा मिलती है और नए कानून किस हद तक बोलने की आजादी को सीमित करेंगे?
हेट स्पीच पर बढ़ती सख्ती
भारत में धर्म, जाति और समुदाय से जुड़े बयान हमेशा संवेदनशील रहे हैं. कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हेट स्पीच पर पहले से भारतीय न्याय संहिता की धाराएं लागू हैं, लेकिन राज्यों ने अब अपने स्तर पर नियम और कड़े करने शुरू कर दिए हैं. हाल ही में कर्नाटक विधानसभा द्वारा पारित हेट स्पीच विधेयक और तेलंगाना सरकार की प्रस्तावित सख्ती ने इस बहस को फिर से केंद्र में ला दिया है.
कर्नाटक का नया कानून क्या कहता है
कर्नाटक विधानसभा ने जो विधेयक पारित किया है, उसमें हेट स्पीच की परिभाषा को बेहद व्यापक बनाया गया है. इसके तहत बोले गए शब्द, लिखित सामग्री, इशारे, दृश्य माध्यम और इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल संचार के जरिए सार्वजनिक रूप से फैलाया गया कोई भी नफरत भरा संदेश हेट स्पीच माना जाएगा. अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय के खिलाफ दुश्मनी, नफरत या वैमनस्य फैलाने के इरादे से बयान देता है, तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा, चाहे संबंधित व्यक्ति जीवित हो या मृत. यह प्रावधान कानून को पहले से अधिक सख्त बनाता है.
तेलंगाना की प्रस्तावित सख्ती
तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि उनकी सरकार दूसरे धर्मों का अपमान करने वालों के खिलाफ कड़ा कानून लाने की तैयारी में है. इसके लिए मौजूदा कानूनों में बदलाव की योजना बनाई जा रही है ताकि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले बयान देने वालों को कड़ी सजा दी जा सके. हालांकि अभी विधेयक का मसौदा सामने नहीं आया है, लेकिन सरकार के रुख से साफ है कि आने वाले समय में हेट स्पीच पर कानूनी शिकंजा और मजबूत होगा.
मौजूदा केंद्रीय कानून क्या कहते हैं
देशभर में हेट स्पीच से जुड़े मामलों में भारतीय न्याय संहिता यानी BNS में हेट स्पीच के लिए कोई अलग से शीर्षक वाली स्वतंत्र धारा नहीं बनाई गई है. इसके बजाय, हेट स्पीच से जुड़े अपराधों को पहले से मौजूद आपराधिक ढांचे के भीतर ही समाहित किया गया है. BNS की धारा 196 वही भूमिका निभाती है, जो पहले भारतीय दंड संहिता में धारा 153A निभाती थी. यह धारा धर्म, जाति, नस्ल, भाषा या समुदाय के आधार पर दो या अधिक समूहों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य फैलाने वाले कृत्यों और बयानों को दंडनीय अपराध मानती है.
BNS के तहत यह साफ किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति शब्दों, लेखन, संकेतों, दृश्य प्रस्तुति या किसी अन्य माध्यम से जानबूझकर सामाजिक समूहों के बीच तनाव पैदा करता है या सार्वजनिक शांति भंग करने की कोशिश करता है, तो उस पर धारा 196 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इस धारा का उद्देश्य सीधे तौर पर सार्वजनिक व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द की रक्षा करना है, न कि हेट स्पीच को एक अलग और स्वतंत्र अपराध की श्रेणी में वर्गीकृत करना.
इसके अलावा, BNS में झूठी या भड़काऊ सूचनाओं के जरिए समाज में डर, दहशत या वैमनस्य फैलाने से जुड़े मामलों के लिए पुराने आईपीसी की धारा 505 से जुड़े प्रावधानों को भी बनाए रखा गया है. इन धाराओं का प्रयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है, जहां बयान या संदेश का असर केवल अपमान तक सीमित न रहकर कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है.
यह भी उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने वर्ष 2017 में हेट स्पीच को लेकर अधिक स्पष्ट और सख्त कानूनी परिभाषा देने की सिफारिश की थी. आयोग ने सुझाव दिया था कि आईपीसी में नई धाराएं 153C और 505A जोड़ी जाएं, ताकि किसी व्यक्ति या समूह की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले नफरत भरे बयानों को सीधे तौर पर दंडित किया जा सके. हालांकि, भारतीय न्याय संहिता में इन सिफारिशों को पूरी तरह से स्वतंत्र धाराओं के रूप में शामिल नहीं किया गया. वर्तमान BNS ढांचे में हेट स्पीच से जुड़े अपराधों को धारा 196 और उससे संबंधित प्रावधानों के तहत ही देखा जाता है.
किन राज्यों में पहले से सख्त रुख
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्यों में हेट स्पीच और सांप्रदायिक बयानबाजी पर पहले से सख्त कार्रवाई देखने को मिलती है. कई मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या राज्य सुरक्षा कानूनों के तहत भी कार्रवाई की गई है. हालांकि इन राज्यों में अलग से हेट स्पीच पर नया कानून नहीं है, लेकिन प्रशासनिक सख्ती के चलते सजा की आशंका ज्यादा रहती है.
अभिव्यक्ति की आजादी बनाम कानून
हेट स्पीच पर सख्त कानूनों को लेकर यह सवाल भी उठता है कि कहीं इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित तो नहीं होगी. संविधान अनुच्छेद 19 के तहत बोलने की आजादी देता है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और सद्भाव बनाए रखने के लिए इस पर उचित प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं. राज्य सरकारें इसी संतुलन को आधार बनाकर नए कानूनों को उचित ठहरा रही हैं.
आगे क्या बदलेगा
कर्नाटक और तेलंगाना की पहल के बाद यह तय माना जा रहा है कि अन्य राज्य भी हेट स्पीच को लेकर अपने कानूनों की समीक्षा करेंगे. डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण सरकारें अब केवल मंच तक सीमित न रहकर ऑनलाइन कंटेंट पर भी सख्ती की तैयारी में हैं. आने वाले समय में एक बयान सिर्फ विवाद नहीं, बल्कि कानूनी संकट भी बन सकता है.
यह भी पढ़ें: Petrol Diesel Expiry Date: क्या पेट्रोल और डीजल की भी होती है एक्सपायरी, जानें कब तक कर सकते हैं स्टोर