भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो आज दुनिया की प्रमुख स्पेस एजेंसी में शुमार है. कभी चर्च से रॉकेट लॉन्च करने और साइकिल, बैलगाड़ी पर पुर्जे ढोने वाले वैज्ञानिकों का यह सफर आज मानवीय मिशन गगनयान तक पहुंच चुका है. इस ऐतिहासिक यात्रा की झलक हर साल 23 अगस्त को मनाए जाने वाले इसरो डे पर देखने को मिलती है.
चर्च से शुरू हुआ सफर
भारत का पहला रॉकेट लॉन्च 21 नवंबर 1963 को केरल के तिरुवनंतपुरम के थुबा गांव से हुआ था. यहां की एक लैटिन कैथोलिक चर्च को प्रयोगशाला बनाया गया और वहीं से अमेरिकी नाइकी अपाचे रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजा गया. स्थानीय मछुआरों की बस्ती से शुरू हुआ यह प्रयोग भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव बना.
बैलगाड़ी और साइकिल से रॉकेट
शुरुआती दौर में संसाधनों की भारी कमी थी. वैज्ञानिकों को सैटेलाइट और रॉकेट के पुर्जे ढोने के लिए साइकिल और बैलगाड़ी का सहारा लेना पड़ा. साल 1981 में जब पहला संचार उपग्रह APPLE लॉन्च किया गया तो उसे धातु रहित प्लेटफार्म पर रखने के लिए बैलगाड़ी का उपयोग किया गया . यही तस्वीर आज भी इसरो की जद्दोंजहद और जज्बे की गवाही देती है.
आर्यभट्ट से लेकर चंद्रयान और मंगलयान तक
1975 में भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट सोवियत संघ से लांच हुआ. इसके बाद INSAT सीरीज ने भारत को संचार क्रांति दी. वहीं पीएसएलवी और जीएसएलवी जैसे लॉन्च व्हीकल्स ने देश को आत्मनिर्भर बनाया. 21वीं सदी में इसरो ने चंद्रमा और मंगल पर सफलता हासिल की. 2008 में चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की खोज कर दुनिया को चौंकाया और 2013 में मंगलयान ने भारत को एशिया का पहला ऐसा देश बना दिया जिसने पहली कोशिश में मंगल की कक्षा में प्रवेश किया.
गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की तैयारी
अब इसरो मानव युक्त मिशन गगनयान 2025 की तैयारी कर रहा है. हाल ही में इसरो प्रमुख वी. नारायण ने दिसंबर में टेस्ट मिशन लॉन्च करने का ऐलान किया. इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की योजना पर भी काम चल रहा है.
इसरो डे 2025 का महत्व
23 अगस्त को इसरो डे देश भर में मनाया जाएगा. यह तारीख इसीलिए खास है क्योंकि इस दिन 2023 में चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक चंद्रमा पर लैंडिंग की थी. उस स्थान को शिव शक्ति पॉइंट नाम दिया गया और इस दिन को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया गया. इस बार की थीम पायनियर स्पेस इनोवेशन फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर यानी सतत भविष्य के लिए अग्रणी अंतरिक्ष नवाचार है. इसका मकसद है कि अंतरिक्ष तकनीक का इस्तेमाल न सिर्फ वैज्ञानिक शोध बल्कि कृषि, आपदा और जलवायु परिवर्तन जैसे चुनौतियों के समाधान में भी किया जाए.
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