स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी ने देश में नए टैक्स की व्यवस्था के बारे में एलान किया था. उन्होंने कहा था कि मौजूदा 4-स्लैब वाले जीएसटी स्ट्रक्चर को बदलकर दो स्लैब में किया जाएगा. इससे कई प्रोडेक्ट्स पर असर पड़ेगा. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में जीएसटी काउंसिल की बैठक हो रही है. इस दौरान जीएसटी ढांचे का अंतिम रूप तय किया जाएगा. इसके जरिए पता चलेगा कि किन-किन चीजों पर कितना जीएसटी का असर होगा.
चलिए जानते हैं कि क्या जीएसटी काउंसिल ऑटोनॉमस बॉडी है और यह कैसे काम करती है और इसके फैसले कौन लेता है?
कर प्रणाली पर देश की सर्वोच्च संस्था
भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने के बाद इसके संचालन और नीतिगत फैसलों की जिम्मेदारी जीएसटी काउंसिल को सौंपी गई है. यह केवल एक सलाहकार निकाय नहीं, बल्कि संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक संस्था है, जिसका गठन संविधान के अनुच्छेद 279A के तहत किया गया है. इसका मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच कर ढांचे को लेकर तालमेल बनाए रखना और एकीकृत कर प्रणाली को सुचारु रूप से लागू करना है.
कैसी है काउंसिल की संरचना
जीएसटी काउंसिल की अध्यक्षता हमेशा केंद्र के केंद्रीय वित्त मंत्री करते हैं. वर्तमान में इसकी अध्यक्ष निर्मला सीतारमण हैं. इसके अलावा, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वित्त मंत्री या कर मामलों से जुड़े मंत्री इस परिषद के सदस्य होते हैं. कुल मिलाकर काउंसिल में 33 सदस्य होते हैं, जिनमें 31 राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि और केंद्र सरकार के 2 प्रतिनिधि शामिल हैं.
कैसे लिए जाते हैं फैसले?
जीएसटी काउंसिल के निर्णय सामान्यतः सर्वसम्मति से लिए जाते हैं, लेकिन यदि किसी मुद्दे पर सहमति न बने तो वोटिंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है. किसी भी प्रस्ताव को पास करने के लिए कम से कम 75% वोट जरूरी होते हैं. वोटिंग की वेटेज प्रणाली इस तरह से तय की गई है कि केंद्र सरकार के पास कुल वोटों का एक-तिहाई (33.33%) हिस्सा है, जबकि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास मिलाकर दो-तिहाई (66.67%) हिस्सा है.
यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है, ताकि कोई भी पक्ष चाहे केंद्र हो या राज्य अपने दम पर अकेले कोई निर्णय न ले सके.
काउंसिल की क्या है भूमिका
जीएसटी काउंसिल का काम केवल कर दरें तय करना भर नहीं है, बल्कि इसके दायरे में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां आती हैं, जैसे कि विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरें तय करना या उन्हें टैक्स से बाहर रखना. केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का बंटवारा करना, किसी राज्य के राजस्व घाटे की भरपाई के लिए व्यवस्था करना, कर ढांचे को सरल और पारदर्शी बनाए रखना.
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