India Free Trade Agreement: भारत ने पिछले एक दशक में अपने ग्लोबल ट्रेड फुटप्रिंट का लगातार विस्तार किया है. हाल ही में भारत ने ओमान के साथ एक कॉम्प्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट पर साइन करके इस यात्रा में एक और मील का पत्थर जोड़ा है. इसके बाद भारत के  ट्रेड एग्रीमेंट की कुल संख्या 17 हो गई है. 

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भारत के अब तक के कुल ट्रेड एग्रीमेंट 

दिसंबर 2025 तक भारत ने अलग-अलग देश और क्षेत्रीय ब्लॉकों के साथ 17 ट्रेड एग्रीमेंट किए हैं. इसमें 13 पूरी तरह से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और कुछ प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट और इकोनॉमिक कोऑपरेशन एग्रीमेंट शामिल हैं. कुल मिलाकर यह समझौते ग्लोबल ट्रेड के एक बड़े हिस्से को कर करते हैं और साथ ही भारतीय एक्सपोर्टर्स को बड़े अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रेफरेंशियल या फिर ड्यूटी फ्री एक्सेस देते हैं. 

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ओमान भारत का 17 वां ट्रेड पार्टनर बन 

दिसंबर 2025 में साइन किया गया भारत ओमान कॉम्प्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट भारत का नया ट्रेड डील है और यूएई के बाद खाड़ी क्षेत्र में इसका दूसरा बड़ा समझौता है. इस समझौते के तहत 98% भारतीय सामानों की कैटेगरी को ओमान में जीरो ड्यूटी एक्सेस मिलेगा.

भारत द्वारा साइन किए गए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट 

भारत के फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और कॉम्प्रिहेंसिव ट्रेड समझौता में दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ समझौते शामिल हैं. इनमें यूनाइटेड किंगडम शामिल है जहां भारत ने 2025 में एक कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक एंड ट्रेड एग्रीमेंट पर साइन किया था जिससे 99% भारतीय एक्सपोर्ट को ड्यूटी फ्री एक्सेस मिला. भारत के ऑस्ट्रेलिया (ECTA), जापान (CEPA), दक्षिण कोरिया (CEPA), संयुक्त अरब अमीरात (CEPA) और मॉरीशस (CECPA) के साथ समझौते हैं. 

दक्षिण पूर्व एशिया में भारत ने सिंगापुर और मलेशिया के साथ कॉम्प्रिहेंसिव समझौते साइन किए हैं और श्रीलंका के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और साथ ही थाईलैंड के साथ एक अर्ली हार्वेस्ट समझौते को भी बनाए रखा है. 

यह व्यापार समझौते भारत को कैसे फायदा पहुंचाते हैं

भारत के मुक्त व्यापार समझौते भारतीय सामानों पर आयात शुल्क को कम करने या फिर खत्म करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग सामान और समुद्री उत्पाद जैसे क्षेत्रों को सबसे ज्यादा फायदा होता है. कई समझौता में तो ऐसे प्रावधान भी शामिल है जो भारतीय पेशेवर खासकर आईटी, स्वास्थ्य सेवा और इंजीनियरिंग क्षेत्र में विदेश में काम करना आसान बनाते हैं. इसी के साथ यह समझौते विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए मजबूत सुरक्षा और प्रोत्साहन देते हैं.

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