अंग्रेजों की हुकूमत से आजादी मिलने के बाद 15 अगस्त 1947 वो ऐतिहासिक दिन था जब भारत में तिरंगा गर्व के साथ लहराया. पूरे देश में आजादी की लहर थी. लेकिन क्या आप जानते हैं, महाराष्ट्र का एक शहर ऐसा था जहां उस दिन तिरंगा नहीं फहराया गया था? जी हां, आज हम उसी शहर के बारे में जानेंगे जहां आजादी के पहले दिन एक अलग झंडा लहराया था. क्या था वो चलिए जानें.
महाराष्ट्र के इस शहर में नहीं फहराया गया तिरंगा
अंतिम मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर बसा औरंगाबाद शहर महाराष्ट्र के पर्यटन के रूप में प्रसिद्ध है. ब्रिटिश काल में हैदराबाद रियासत का हिस्सा रहा यह शहर 1960 में महाराष्ट्र का हिस्सा बन गया. 15 अगस्त 1947 को जब पूरा भारत आजादी का जश्न मना रहा था तब हैदराबाद रियासत में निजाम का शासन था. निजाम उस्मान अली खान ने भारत में विलय से इनकार कर दिया था और अपनी रियासत को स्वतंत्र रखने का फैसला किया था. इस वजह से उस दिन हैदराबाद में तिरंगा नहीं, बल्कि निजाम का झंडा 'आसफिया' फहराया गया था. हैदराबाद रियासत का था हिस्सा
हैदराबाद रियासत उन देसी रियासतों में से थी जिन्हें भारत या पाकिस्तान में विलय का फैसला लेना था. निजाम ने स्वतंत्र रहने की इच्छा जताई थी, जिसके कारण 15 अगस्त 1947 को और यहां तक कि 1948 में भी हैदराबाद में तिरंगा नहीं फहराया गया. हैदराबाद में निजाम के शासन के कारण स्थानीय लोग आजादी के जश्न से वंचित रहे. निजाम के झंडे, जिसे आसफिया ध्वज कहा जाता था, में पीले रंग की पृष्ठभूमि पर हरा और सफेद रंग का डिजाइन था. यह झंडा उस समय रियासत की पहचान था. लेकिन स्थानीय लोगों में आजादी की चाहत बुलंद थी. कई संगठनों और स्वतंत्रता सेनानियों ने निजाम के खिलाफ आवाज उठाई.
भारत सरकार ने 'ऑपरेशन पोलो' शुरू किया
आजादी के करीब एक साल बाद तक हैदराबाद भारत का हिस्सा नहीं रहा. 21 जून 1948 को गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन के इस्तीफे के बाद तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक साहसिक फैसला लिया. आखिरकार, 17 सितंबर 1948 को भारत सरकार ने 'ऑपरेशन पोलो' शुरू किया, जिसके बाद हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हुआ. इसके बाद ही हैदराबाद में पहली बार तिरंगा फहराया गया. इसे भी पढ़ें- 15 अगस्त 1947 के दिन हिंदुस्तानियों पर पैर रखकर चली थी माउंटबेटन की बेटी, हैरान कर देगा यह किस्सा