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आरक्षण में आर्थिक स्थिति के आधार पर प्राथमिकता की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में कहा गया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग में आरक्षण का लाभ उन लोगों को अधिक मिल रहा है जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं. यह समाज में समानता लाने के आरक्षण के मूल उद्देश्य के मुताबिक नहीं है.

याचिकाकर्ता रमाशंकर प्रजापति और यमुना प्रसाद ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को आरक्षण नीति में बदलाव के लिए कहे. सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में आरक्षण देते समय आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को प्राथमिकता मिले. उन्हें आरक्षित वर्ग के एक अलग उपवर्ग की तरह देखा जाए. याचिकाकर्ताओं ने देविंदर सिंह बनाम पंजाब मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया है जिसमें आरक्षण के उपवर्गीकरण को सही ठहराया गया था.

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सोमवार (11 अगस्त, 2025) को याचिका जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच में सुनवाई के लिए लगी. याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वकील रीना एन सिंह ने कहा कि सिर्फ कानून बना देना न्याय नहीं होता. न्याय तब होता है जब कानून का लाभ जरूरतमंद तक पहुंचे. आरक्षण में भी इस सिद्धांत के पालन की आवश्यकता है.

थोड़ी देर की बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार को जरूरी मानते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया. याचिका में रखी गई मांग के असर की ओर इशारा करते हुए बेंच के अध्यक्ष जस्टिस सूर्य कांत ने याचिकाकर्ता की वकील से कहा, 'आप तैयार रहिए. आपको काफी विरोध का सामना करना पड़ेगा.'