पिछले कुछ सालों में भारत में तलाक बड़ी चर्चा का विषय रहा है. इसको लेकर देश में नया कानून बना और तीन तलाक को गैर-कानूनी बताते हुए इसको लेकर सजा का भी प्रावधान तय किया गया है. लेकिन क्या आपको पता है कि इस्लाम में सिर्फ आदमी ही नहीं बल्कि औरतें भी अपने पति को तलाक दे सकती हैं. लेकिन कैसे और इसको लेकर इस्लाम में क्या नियम है?
क्या मुस्लिम औरतें भी ले सकती हैं तलाक
मुस्लिम समाज में औरतों को भी तलाक देने का हक है. इस्लाम औरत को अपनी मर्जी से तलाक लेने की अनुमति देता है. इस्लाम में खुला का मतलब औरत के तलाक के हक को लेकर होता है. इस्लाम धर्म की मानें को कुरान में शादी को पुरुष और महिला दोनों के बीच एक विधिवत करार माना जाता है, इसीलिए दोनों को इस करार को रद्द करने का भी हक होता है. यानि कि जो महिला करार करने के लायक होती है तो वो इस समझौते को भी रद्द कर सकती है.
इस्लाम में महिलाओं के लिए तलाक कानून
इस्लाम के अनुसार निकाह में पत्नी तीन वजहों से खुला या तलाक की कार्रवाई शुरू कर सकती है. जैसे कि अगर किसी महिला पर उसका पति गलत व्यवहार कर रहा है, पति अपना फर्ज न निभा पा रहा हो. उस महिला को प्यार, इज्जत और सुख नहीं दे रहा हो तो महिलाएं भी तलाक ले सकती हैं. इसीलिए देश में मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून 1939 बनाया गया है. यह सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के तलाक के हक के लिए होता है. इसके जरिए कोई भी मुस्लिम महिला पति से तलाक ले सकती है.
क्या होता है खुला
खुला तीन तलाक का एक रूप होता है, इसमें महिला भी अपने पति से तलाक ले सकती है. लेकिन यह सिर्फ एक महिला की तरफ से ही लिया जाता है. इसके जरिए पत्नी अपने पति के साथ सारे संबंध तोड़ सकती है. इस्लाम के अनुसार खुला का जिक्र कुरान और हदीस में भी है. अगर कोई महिला पति से खुला लेती है, तो उसको जायदाद का कुछ हिस्सा उसे वापस देना होता है. खुला की इच्छा बीवी रखती है, लेकिन रजामंदी दोनों तरफ से जरूरी होती है.
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