Verdict on Sheikha Hasina: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना से जुड़े मामले में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) आज, सोमवार को अपना फैसला घोषित कर दिया है. ICT कोर्ट ने शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाई है. हसीना पर पिछले साल छात्र आंदोलन पर की गई कार्रवाई को लेकर मामला दर्ज किया गया था. यही आरोप अब उनके खिलाफ गंभीर मुकदमे का आधार बने. 

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ऐसे में सवाल यह भी है कि अब बांग्लादेश में कोर्ट ने तो शेख हसीना के खिलाफ फैसला सुना दिया तो क्या अब भारत उनको वापस उनके देश भेज सकता है, या नहीं. आखिर इसको लेकर नियम क्या हैं.

शेख हसीना पर हिंसा भड़काने का आरोप

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बांग्लादेश के ट्राइब्यूनल के जज का कहना है कि जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान हुए विरोध प्रदर्शनों में हालात बिल्कुल बिगड़ गए थे. इन हिंसक झड़पों में करीब 1400 लोगों की जान चली गई, जबकि 2400 से ज्यादा लोग जख्मी हुए. जज के मुताबिक, हालात काबू करने के लिए उस समय की शेख हसीना सरकार ने भारी हथियारों तक का इस्तेमाल कराया. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए हेलिकॉप्टर से गोलीबारी भी कराई गई, जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में बड़ी तबाही मची और हालात और ज्यादा खराब हो गए थे. इसी के बाद से शेख हसीना ने बांग्लादेश से भागकर भारत में आकर शरण ली थी.

क्या भारत शेख हसीना को वापस भेज सकता है?

सबसे पहले समझना जरूरी है कि किसी भी देश का भगोड़ा या आरोपी सीधे लौटाया नहीं जा सकता है. इसके लिए प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty), कानूनी प्रक्रिया, सुरक्षा मूल्यांकन और मानवाधिकार की शर्तें लागू होती हैं. भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौता जरूर है, लेकिन यह तभी लागू होता है जब मामला पूरी तरह आपराधिक हो और राजनीतिक रंग न लिए हो. अंतरराष्ट्रीय कानून का सबसे बड़ा सिद्धांत यह है कि राजनीतिक प्रतिशोध से जुड़े मामलों में किसी भी व्यक्ति को वापस नहीं भेजा जाता है. 

किन परिस्थितियों में रोका जा सकता है प्रत्यर्पण?

अगर बांग्लादेश की अदालत का फैसला राजनीतिक बदले जैसा दिखता है या सत्ता परिवर्तन से उपजा लगता है, तो भारत कानूनी रूप से प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है. इसका आधार साफ है कि भारत यह देखेगा कि शेख हसीना को निष्पक्ष सुनवाई मिलेगी या नहीं, और क्या उनकी जान को खतरा है. यदि खतरे की आशंका सामने आती है, भारत की अदालतें प्रत्यर्पण रोक सकती हैं.

इसके अलावा, शेख हसीना चाहें तो भारत में राजनीतिक शरण (Political Asylum) का दावा कर सकती हैं. यदि भारत सरकार शरण मंजूर कर लेती है, तो ऐसी स्थिति में किसी को भी वापस भेजना अंतरराष्ट्रीय शरणालय नियमों के खिलाफ होगा. भारत ने पहले भी दलाई लामा, तमाम अफगान नेताओं, श्रीलंका और पाकिस्तान के अनेक राजनीतिक चेहरों को शरण दी है.

भारतीय न्यायालय करेगा जांच

आखिरी और सबसे अहम बात, फैसला भारत की अदालतें करेंगी, बांग्लादेश की नहीं. बांग्लादेश चाहे जितने दस्तावेज भेजे, उन्हें भारतीय न्यायालय की जांच-पड़ताल से गुजरना होगा. कई बार इस पूरी प्रक्रिया में सालों तक समय लग जाता है. कुल मिलाकर, बांग्लादेश की अदालत का फैसला अपने-आप भारत को कोई कार्रवाई करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. फैसला कानूनी, राजनयिक और सुरक्षा सभी पहलुओं को देखकर ही लिया जाएगा. 

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