25 जून का दिन भारत की राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. दरअसल, 1975 में देश में पहली बार राजनीतिक कारणों से राष्ट्रीय इमरजेंसी की घोषणा 25 जून को ही की गई थी. यह वह समय था जब देश के लोकतंत्र पर सवाल उठे और इस घटना को आज भी देश के इतिहास में काला दिवस के रूप में याद किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में इमरजेंसी की घोषणा किन परिस्थितियों में की जा सकती है और यह संविधान के किस अनुच्छेद में दर्ज है. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भारत में कितनी तरह की इमरजेंसी लगाई जा सकती हैं और किन नियमों के तहत ऐसा होता है.
संविधान में इमरजेंसी का प्रावधान और प्रकार
भारतीय संविधान के भाग XVIII के अनुच्छेद 352 से 360 में इमरजेंसी से जुड़े प्रावधान दिए गए हैं. इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि अगर देश की सुरक्षा, अखंडता या लोकतांत्रिक व्यवस्था को खतरा हो तो वह इमरजेंसी की घोषणा कर सकते हैं. भारतीय संविधान के अनुसार, देश में तीन प्रकार से इमरजेंसी की घोषणा की जा सकती है.
1. राष्ट्रीय इमरजेंसी2. राज्य इमरजेंसी-राष्ट्रपति शासन3. वित्तीय इमरजेंसी
राष्ट्रीय इमरजेंसी
राष्ट्रीय इमरजेंसी की चर्चा संविधान के अनुच्छेद 352 में की गई है. इसे पूरे देश या किसी एक हिस्से में लगाया जा सकता है. यह तब लागू होती है जब राष्ट्रपति को लगे कि भारत की सुरक्षा को खतरा है. राष्ट्रीय इमरजेंसी तीन परिस्थितियों में लगाई जा सकती है. इसमें पहली स्थिति युद्ध की होती है. जब देश किसी अन्य देश से औपचारिक रूप से युद्ध कर रहा हो तो उस समय यह इमरजेंसी लगाई जा सकती है. इसके अलावा जब कोई विदेशी ताकत भारत पर हमला कर दे तो उस समय भी बाहरी आक्रमण के तहत इमरजेंसी लगाई जा सकती है. वहीं जब देश के अंदर सशस्त्र तरीके से सरकार के खिलाफ विरोध हो तो भी इमरजेंसी लगाई जा सकती है. हालांकि पहले इसे आंतरिक अशांति कहा जाता था, जिसे 1978 में हुए 44 में संविधान संशोधन से सशस्त्र विद्रोह कर दिया. वहीं राष्ट्रपति राष्ट्रीय इमरजेंसी की घोषणा केवल केंद्रीय मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर ही कर सकते हैं. इस घोषणा को एक महीने के अंदर संसद की मंजूरी मिलना जरूरी है.
भारत में अब तक तीन बार राष्ट्रीय इमरजेंसी लगाई गई है.
- पहली राष्ट्रीय इमरजेंसी- 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान
- दूसरी राष्ट्रीय इमरजेंसी- 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान
- तीसरी राष्ट्रीय इमरजेंसी- 1975 में आंतरिक अशांति के कारण
राज्य इमरजेंसी
राज्य इमरजेंसी या राष्ट्रपति शासन का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 में दिया गया है. यह तब लगाई जाती है जब किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाए. ऐसे में राष्ट्रपति राज्यपाल से मिली रिपोर्ट के आधार पर यह निर्णय लेते हैं कि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा. इसे लागू करने के बाद 2 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों से मंजूरी लेना जरूरी होता है.
वित्तीय इमरजेंसी
वित्तीय इमरजेंसी का प्रावधान अनुच्छेद 360 में है. अगर राष्ट्रपति को लगे कि देश या किसी राज्य की वित्तीय स्थिरता को खतरा है तो वह वित्तीय इमरजेंसी की घोषणा कर सकते हैं. हालांकि अब तक भारत में कभी भी वित्तीय इमरजेंसी की घोषणा नहीं की गई है.