घर की सफाई करते हुए आपने कभी नोटिस किया है कि कुछ देर बाद चीजों पर धूल फिर से जमना शुरू हो जाती है. आप सोचते हैं कि घर के खिड़की-दरवाजे खुले हैं तो धूल तो आएगी ही, लेकिन अगर आप सारे खिड़की और दरवाजे बंद भी कर दें, तब भी धूल को आने से नहीं रोका जा सकता. क्या आपके मन में कभी ख्याल आया है कि इतनी धूल कहां से आती है? यह कैसे बनती है? इसके पीछे का विज्ञान क्या है... 

दरअसल, धूल हर जगह मौजूद होती है. यह हमारे घरों, इमारतों के साथ-साथ प्राकृतिक वातावरण में भी मौजूद होती है. कुछ धूल प्राकृतिक होती है, जो हवा के साथ हमारे घर तक पहुंच जाती है. वहीं, कुछ धूल तो अंतरिक्ष से भी आती है और पृथ्वी पर चारों तरफ फैल जाती है. यह धूल हवा के साथ हमारे घर के अंदर आ जाती है और चीजों पर जमना शुरू हो जाती है, लेकिन घर पूरी तरह से बंद होने पर भी एक तरह की धूल बनना शुरू हो जाती है. 

घर के अंदर ही बनती है एक तिहाई धूल

अगर आप यह सोचते हैं कि धूल सिर्फ मिट्टी या चट्टानों के कण होते हैं, जो हवा के साथ घर या इमारतों पर चिपक जाते हैं तो आप गलत हैं. दरअसल, घर में जमने वाली एक तिहाई धूल का हिस्सा घर के अंदर के स्रोतों से ही उत्पन्न होता है. कुछ स्टडी में पता चला है कि घर में पाई जाने वाली धूल का लगभग 20 से 50 फीसदी हिस्सा हमारे शरीर की मृत त्वचा कोशिकाओं से बना होता है. इसके अलावा पालतू जानवरों की त्वचा कोशिकाओं और बाल भी धूल का हिस्सा होते हैं. 

दो तिहाई हिस्सा आता है बाहर से

घर पर जमा होने वाली धूल का दो तिहाई हिस्सा बाहर से हमारे घर पर पहुंचता है. दरअसल, धूल ठोस पदार्थों के बारी कणों से बनी होती है, जो हवा के साथ मिलकर घर के अंदर पहुंचती है. ये आम तौर पर वायुमंडलीय कण होते हैं, जो हवा द्वारा उठाई गई मिट्टी, कपड़ों, जूतों के जरिए घर तक पहुंचती है. इसके अलावा ज्वालामुखी विस्फोट और अंतरिक्ष की धूल भी हवा के जरिए घर में पहुंचकर जमना शुरू हो जाती है. 

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