जब हम पानी में तैरते या नहाते हैं, तो आमतौर पर हमारे मन में ये सवाल नहीं आता कि पानी में कोई ऐसा जीव भी हो सकता है जो हमारी जान को खतरे में डाल दे. लेकिन केरल से आई एक बड़ी खबर ने लोगों के मन में इस डर को और बढ़ा दिया है, वहां एक नौ साल की बच्ची की मौत एक बेहद खतरनाक जीव, जिसे ब्रेन-ईटिंग अमीबा कहते हैं, के कारण हो गई. इसे वैज्ञानिक भाषा में नेगलेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri) कहते हैं. यह अमीबा आम कीटाणुओं से अलग है, क्योंकि यह माइक्रोस्कोप से देखा जाता है और ये हल्के गर्म पानी, स्थिर पानी में तेजी से पनपता है जैसे तालाब, झील या स्विमिंग पूल.
केरल में इस तरह के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं और राज्य सरकार ने लोगों को जागरूक करने और संक्रमण से बचाव के लिए कई कदम उठाए हैं. वहीं भारत में ब्रेन-ईटिंग अमीबा के कारण पहला मामला 1971 में दर्ज किया गया था. केरल में पहला मामला 2016 में आया था, और तब से राज्य में इसके कुछ और मामले सामने आए हैं. हाल ही में 2024 तक भारत में इसके कारण कई मौतें हुई हैं, लेकिन कुछ मरीजों का इलाज सफल भी रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कि ब्रेन-ईटिंग अमीबा कितना खतरनाक है और क्या ये इंसानों का दिमाग वाकई खा जाता है.
ब्रेन-ईटिंग अमीबा कितना खतरनाक?
ब्रेन-ईटिंग अमीबा एक बेहद खतरनाक जीव है जो नाक के रास्ते शरीर में जाता है और सीधे दिमाग तक पहुंचकर दिमाग के सेल्स को खत्म कर देता है. यह संक्रमण बहुत खतरनाक है, रिपोर्ट्स के मुताबिक, इससे मिलने वाले मामलों में ज्यादातर मौत हो जाती है. यह अमीबा खासकर गंदे और बिना क्लोरीन वाले पानी में पाया जाता है. जब कोई व्यक्ति ऐसे पानी में तैरता या नहाता है, तो ये अमीबा नाक के अंदर जाकर दिमाग तक पहुंच सकता है.
इस संक्रमण के शुरुआती लक्षण कुछ इस तरह होते हैं कि लोग इसे नॉर्मल सर्दी-जुकाम या वायरल बुखार समझ लेते हैं. इनमें तेज सिरदर्द, बुखार, उल्टी, गर्दन में अकड़न, और कमजोरी शामिल हैं. जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, मरीज को दौरे पड़ सकते हैं, भ्रम की स्थिति हो सकती है और वह कोमा में भी जा सकता है. इस संक्रमण की गंभीरता इतनी ज्यादा होती है कि कई बार मरीज की मौत कुछ ही दिनों में हो जाती है.
ब्रेन-ईटिंग अमीबा का इलाज है या नहीं?
ब्रेन-ईटिंग अमीबा का इलाज बहुत मुश्किल होता है. इसे मेडिकल भाषा में प्राइमरी अमीबिक मेनिंजोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहा जाता है. इस बीमारी का कोई परमानेंट इलाज नहीं है और ज्यादातर दवाइयां दिमाग तक ठीक से नहीं पहुंच पाती. इसलिए बीमारी की जल्दी पहचान और तुरंत इलाज शुरू करने से ही बचा जा सकता है, लेकिन फिर भी मौत का खतरा ज्यादा रहता है.
इससे बचाव के लिए साफ और क्लोरीनयुक्त पानी में ही तैरें. स्विमिंग पूल या वाटर पार्क का पानी साफ और क्लोरीन युक्त होना जरूरी है. साथ ही तैरते समय नाक पर क्लिप लगाएं ताकि पानी नाक में न जाए. लाब, झील, या बिना साफ सफाई वाले स्विमिंग पूल से बचें. नेति पॉट जैसे उपकरणों में उबला या डिस्टिल्ड पानी ही यूज करें.अगर नहाने के बाद तेज सिरदर्द, बुखार, उल्टी या भ्रम की स्थिति हो, तो तुरंत इलाज कराएं.
क्या सच में ये अमीबा इंसान का दिमाग खाता है?
वैज्ञानिक रूप से इसे ब्रेन-ईटिंग’ कहा जाता है क्योंकि यह अमीबा दिमाग के सेल्स को खत्म करता है. हालांकि ये अमीबा सच में दिमाग को खा नहीं रहा होता, लेकिन यह दिमाग के टिशू को नुकसान पहुंचाकर खतरनाक संक्रमण पैदा कर देता है. इसलिए इसे खतरनाक जीव माना जाता है.
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