World Heritage UNESCO: यूनेस्को की विश्व धरोहर(World Heritage) की लिस्ट में होयसला-शैली के मंदिर को शामिल किया गया है. अप्रैल 2014 से यूनेस्को की अस्थायी सूची में इसे शामिल किया गया था. इसे जनवरी 2022 में 2022-23 के लिए विश्व धरोहर स्थल के रूप में विचार के लिए भारत के नामांकन के रूप में अंतिम रूप दिया गया था. बता दें कि ये मंदिर 12वीं से 13वीं शताब्दी में बनाए गए थे और होयसल युग के कलाकारों और वास्तुकारों की रचनात्मकता और कौशल के प्रतीक हैं. आइए आज इस मंदिर की उस कहानी के बारे में जानते हैं, जिसके बारे में आपको जानकर काफी खुशी होगी. 


कैसे हुआ इस मंदिर का निर्माण?


होयसल साम्राज्य ने 10वीं और 14वीं शताब्दी के बीच कर्नाटक राज्य के एक बड़े हिस्से पर शासन किया था. साम्राज्य की राजधानी शुरू में बेलूर में थी. हालांकि, बाद में इसे हलेबिदु में स्थानांतरित कर दिया गया था. होयसला के मंदिरों में एक बुनियादी पारंपरिक दार्विडियन मॉर्फोलॉजी है, जिसपर मध्य भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भूमिजा विधा, उत्तरी और पश्चिमी भारत की नागर परंपराओं और कल्याणी चालुक्यों द्वारा समर्थित कर्नाट द्रविड़ विधा का मजबूत प्रभाव दिखता है. इसके निर्माण के लिए वास्तुकारों ने विभिन्न प्रकार की मंदिर वास्तुकला से प्रेरणा ली थी, जिसके बाद 'होयसला मंदिर' का जन्म हुआ था.


बेहद खास है इस मंदिर का डिजाइन


यूनेस्को की आधिकारिक वेबसाइट में कहा गया है कि मंदिरों में उसकी विशेषता अति-वास्तविक मूर्तियां और पत्थर की नक्काशी है जो संपूर्ण वास्तुशिल्प को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है. बड़े पैमाने की मूर्तिकला गैलरी है. भारत में मंदिरों का एक बड़ा इतिहास रहा है. अभी भी देश में अलग-अलग मूर्तियों के बारे में काफी रोचक कहानी मौजूद है. इस मंदिर को जब वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया गया था, तब पीएम मोदी समेत कई लोगों ने ट्वीट कर बधाई दी थी. यूनेस्को ने इस मंदिर को काफी खास बताया था और इतिहास को अपने आप में समेटे हुए है.


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