भारत के महान और वीर राजाओं की बात जब भी होगी उसमें हेमू का नाम जरूर होगा. मध्ययुगीन भारत में जब मुस्लिम शासक अपने पैर पसार रहे थे तब हेमू उन राजाओं में से थे जिन्होंने हिंदू राज स्थापित किया था. अपने शासनकाल में 22 लड़ाइयां जीतने वाले हेमू को कुछ इतिहासकार मध्य युग का समुद्र गुप्त भी कहते हैं. यहां तक कि उन्हें मध्य युग का नेपोलियन भी कहा जाता था.


राज घराने से नहीं थे


ये वो दौर था जब राजा का बेटा ही राजा बनता था. लेकिन हेमू पर ये बात लागू नहीं हुई. हेम चंद्र जिसे पूरी दुनिया हेमू के नाम से जानती है उनका जन्म 1501 में हरियाणा के रवाड़ी के एक गांव कुतबपुर में हुआ. उनका परिवार किराने का काम करता था. यही वजह है कि अकबर की जीवनी लिखने वाला अबुल फ़ज़ल अपने दस्तावेजों में उन्हें तिरस्कारपूर्वक एक फेरीवाला बताता है जो रेवाड़ी की गलियों में नमक बेचा करते थे.


राजा बनने की कहानी


हेमू पैदा भले ही सामान्य परिवार में हुए थे. लेकिन उनमें गुण शासकों वाले थे. इन्हीं गुणों की वजह से जल्द ही वो शेरशाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह की नजर में आ गए. धीरे-धीरे वो बादशाह के विश्वासपात्र बने और फिर आदिल शाह के शासनकाल में उन्हें  'वकील ए आला' यानि प्रधानमंत्री का दर्जा मिल गया.


हालांकि, राजा बनने में अभी भी उनके सामने एक चुनौती थी. ये चुनौती थी दिल्ली. दरअसल, दिल्ली पर हुमायूं ने वापिस कब्जा कर लिया था और आदिल शाह ने हुमायूं को दिल्ली से बाहर खदेड़ने की जिम्मेदारी हेमू को सौंपी.


सबसे खतरनाक फौज


हेमू ने हुमायूं को दिल्ली से खदेड़ने के लिए 50 हजार लोगों की सेना तैयार की. इसमें एक हजार हाथी और 51 तोपें शामिल थीं. हेमू जब दिल्ली की ओर निकले तो उनकी सेना को देख कर कालपी और आगरा के गवर्नर अब्दुल्लाह उज़बेग ख़ां और सिकंदर ख़ां डर के मारे अपना शहर छोड़कर भाग गए. के.के भारद्वाज की किताब 'हेमू नेपोलियन ऑफ़ मीडिवल इंडिया' के मुताबिक, अक्तूबर 1556 में हेमूं ने दिल्ली जीत लिया और अपने सिर के ऊपर शाही छतरी लगाकर हिंदू राज की स्थापना की. इसके बाद हेमू ने नामी महाराजा विक्रमादित्य की पदवी भी गृहण की.


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