सरकार ने अब चांदी के गहनों की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए बड़ा कदम उठाया है. जैसे सोने पर हॉलमार्किंग जरूरी है, वैसे ही अब चांदी की ज्वेलरी पर भी शुद्धता की गारंटी मिलेगी. चांदी की ज्वेलरी पर हॉलमार्किंग का नया नियम लागू होने जा रहा है. हालांकि अभी तो यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले समय में लोग हॉलमार्क वाली चांदी की तरफ ज्यादा भरोसा दिखाएंगे. चलिए जानें कि आखिर हॉलमार्किंग क्या होती है और इससे चांदी की शुद्धता कैसे तय होगी, व यह नियम कब से लागू होने जा रहा है.

क्या है नया नियम और कब से होगा लागू?

भारतीय मानक ब्यूरो यानि कि BIS ने चांदी की शुद्धता के लिए छह स्टैंडर्ड तय किए हैं, पहला है 800, फिर 835, 900, 925, 970 और 990. यानि कि अब बाजार में बिकने वाली चांदी की ज्वेलरी इन्हीं कैटेगरी में हॉलमार्क करके बेची जाएगी. 1 सितंबर 2025 से चांदी की ज्वेलरी पर हॉलमार्किंग का नया नियम लागू हो जाएगा. हालांकि शुरुआत में यह नियम अनिवार्य नहीं बल्कि वॉलंटरी रहेगा. यानि कि ग्राहक अपनी इच्छा से हॉलमार्क या फिर बिना हॉलमार्क वाली ज्वेलरी खरीद सकते हैं.

क्या है हॉलमार्किंग और कैसे तय करता है गहनों की शुद्धता

हॉलमार्किंग का मतलब होता है किसी धातु जैसे सोना, चांदी, प्लेटिनम आदि की शुद्धता की गारंटी देना. भारत में यह काम BIS यानि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स तय करता है. जब कोई ज्वैलरी या धातु का सामान BIS की लैब में टेस्ट किया जाता है और यदि उसकी शुद्धता तय मानकों के हिसाब से सही पाई जाती है, तो उस पर एक निशान या यूनिक कोड HUID लगा दिया जाता है. यही निशान या कोड हॉलमार्क कहलाता है. 

उदाहरण से समझें तो अगर आप 22 कैरेट सोने की अंगूठी खरीदते हैं, तो हॉलमार्क यह गारंटी देता है कि वह वाकई 22 कैरेट की ही है. अब यही नियम 1 सितंबर 2025 से चांदी की ज्वेलरी पर भी लागू होगा.

हॉलमार्किंग क्यों है जरूरी

हॉलमार्किंग से ग्राहक को यह भरोसा रहता है कि जिस गहने की शुद्धता के लिए वह पैसा चुका रहा है, वह वास्तव में उतना ही शुद्ध है. अभी तक कई बार देखा गया है कि बाजार में मिलावटी या कम शुद्धता वाली चांदी ऊंचे दामों पर बेच दी जाती है. नया नियम लागू हो जाने के बाद से ऐसी गड़बड़ियों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकेगी.

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