MGNREGA Name Change: केंद्र सरकार भारत के ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को खत्म कर जल्द ही एक बिल्कुल नया कानून और नई पहचान लाई जा सकती है.  विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण बिल 2025 नाम का एक बिल संसद में पेश किया जाना है. अगर यह बिल पास हो जाता है तो यह मौजूदा मनरेगा एक्ट की जगह लेगा. हालांकि इस कदम के राजनीतिक और नीतिगत प्रभाव पर बहस हो रही है, लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि किसी सरकारी योजना का नाम बदलने में असल में कितना खर्च आता है.

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क्या-क्या होंगे बदलाव 

मनरेगा सिर्फ एक कल्याणकारी योजना नहीं है बल्कि संसद के द्वारा पारित एक कानूनी गारंटी है. इसे बदलने का मतलब है पुराने कानून को रद्द करना और एक नया कानून बनाना. पहले ऐसा कहा जा रहा था कि इस योजना का नाम महात्मा गांधी के नाम पर किसी और रूप में रखा जा सकता है लेकिन अब सरकार विकसित भारत फ्रेमवर्क के तहत पूरी तरह से नई ब्रांडिंग का प्रस्ताव दे रही है.

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किसी योजना का नाम बदलने में कितना खर्च 

केंद्र सरकार की किसी भी योजना का नाम बदलने की कोई तय या आधिकारिक घोषित लागत नहीं होती. इसके बजाय इसमें मंत्रालयों, राज्यों और जिलों में फैले खर्च की कई परतें शामिल होती हैं. अंतिम लागत योजना के आकार और विस्तार के साथ-साथ फिजिकल और डिजिटल सिस्टम में कितनी गहराई से जुड़ी हुई है इस बात पर निर्भर करती हैं. अब मनरेगा भारत के हर जिले और लगभग हर गांव में काम करती है इस वजह से छोटे से छोटे बदलाव में भी बड़े खर्च आएंगे.

प्रशासनिक और कानूनी खर्च 

खर्च का पहला स्तर प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रियाओं से आता है. इसमें एक नए बिल को तैयार करना और पास करना, नोटिफिकेशन को जारी करना, नियमों में बदलाव करना और आधिकारिक रिकॉर्ड अपडेट करना शामिल है. आपको बता दें की प्रति नोटिफिकेशन कुछ हजार रुपए के दायरे में अनुमानित होती हैं. 

फिजिकल बदलावों की लागत 

मनरेगा पूरे ग्रामीण भारत में पंचायत भवन, कार्य स्थल, सरकारी कार्यालय एवं सार्वजनिक सूचना बोर्ड पर साइन बोर्ड के जरिए दिखाई देती है. योजना का नाम बदलने का मतलब है लाखों बोर्ड, होर्डिंग, ऑफिस नेम प्लेट और छपे हुए रजिस्टरों को बदलने या दोबारा से रंगना. अब क्योंकि मनरेगा देशव्यापी प्रोग्राम है इस वजह से इस काम में ही करोड़ों रुपए खर्च हो सकते हैं.

इसी के साथ डिजिटल सिस्टम और टेक्नोलॉजी अपडेट भी किया जाएगा. स्कीम का नाम बदलने से सॉफ्टवेयर कोड, डोमेन नेम, पोर्टल, मोबाइल एप्लीकेशन, और ट्रेंनिंग मैन्युअल में भी बदलाव करना पड़ेगा. साथ ही पब्लिसिटी, जागरूकता और कम्युनिकेशन में भी काफी खर्चा आएगा.

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