हर साल 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है. मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर गुजरात में हुआ था. यह दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान और सत्य, अहिंसा और सादगी के उनके सिद्धांतों के सम्मान में मनाया जाता है. इस साल यानी 2 अक्टूबर 2025 को महात्मा गांधी की 156वीं जयंती मनाई जाएगी. हालांकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अगर महात्मा गांधी को सबसे आगे माना जाता है, तो उनके पीछे खड़ी एक सशक्त महिला की भूमिका को भी भुलाया नहीं जा सकता है. गांधी जी के साथ खड़ी सशक्त महिला की भूमिका उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने पूरी की थी. महात्मा गांधी कस्तूरबा गांधी को बा कहते थे. 

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गांधी जी और कस्तूरबा गांधी का रिश्ता कोई आम रिश्ता नहीं था. यह रिश्ता प्रेम, संघर्ष, आत्म-समर्पण और जीवनभर के साथ का प्रतीक बन गया. गांधी जी ने कस्तूरबा के साथ 62 साल का लंबा जीवन बिताया. इतने सालों तक एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी रहे, पर जब कस्तूरबा ने इस दुनिया को अलविदा कहा तो गांधी जी ने जो शब्द कहे, उन्हें पढ़कर कोई भी इमोशनल हो जाएगा. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि जब कस्तूरबा का निधन हुआ तो गांधी जी क्या बोले थे. 

गांधी जी और कस्तूरबा बचपन से जीवन भर का साथ

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महात्मा गांधी और कस्तूरबा की शादी तब हुई जब वे दोनों सिर्फ 13 साल के थे. यह एक बाल विवाह था, जो उस समय आम बात थी. शुरुआत में गांधी जी ने एक पति के रूप में अपनी पत्नी को अपने मुताबिक चलाने की कोशिश की, पर कस्तूरबा ने हमेशा अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखा. धीरे-धीरे गांधी जी ने भी माना कि कस्तूरबा की जिद, उनका साहस और उनका समर्पण ही उनके जीवन की सबसे बड़ी ताकत है. गांधी जी ने लिखा थाह बहुत जिद्दी थीं, लेकिन उनका यह स्वभाव ही उन्हें मजबूत बनाता था. मैंने उन्हें बदलने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा, बाद में समझ में आया कि वो जैसी थीं, वही सबसे सही थी. जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे, कस्तूरबा ने वहीं से अपने पब्लिक जीवन की शुरुआत की, जिसमें वह जेल भी गई, धरनों में बैठी और हर उस संघर्ष का हिस्सा बनीं जिसमें गांधी जी थे. भारत लौटने के बाद भी वे कभी पीछे नहीं हटीं. चंपारण आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन  हर जगह उनका साथ रहा. 

जब कस्तूरबा का निधन हुआ तो गांधी जी क्या बोले थे?

1944 की शुरुआत में कस्तूरबा की तबीयत बहुत खराब हो गई. वह दिल के दौरे से जूझ रही थीं और आगा खान पैलेस के बंदीगृह में गांधी जी के साथ ही थीं. उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. उन्हें अहसास हो गया था कि अब उनके जीवन के अंतिम क्षण आ गए हैं. 22 फरवरी 1944 को, गांधी जी की गोद में सिर रखकर कस्तूरबा ने इस दुनिया को अलविदा कहा. उनके अंतिम शब्द थे कि मेरी मृत्यु पर शोक मत करना। यह एक आनंद का अवसर होना चाहिए. 23 फरवरी को, आगा खान पैलेस में उनका अंतिम संस्कार हुआ. गांधी जी पूरी चिता के पास बैठे रहे, जब तक आग बुझ नहीं गई. कस्तूरबा के निधन के बाद गांधी जी ने उन्हें याद करते हुए ये शब्द कहे कि अगर कुछ था भी तो वह मुझसे ऊपर थीं. उनके अटूट सहयोग के बिना मैं रसातल में चला जाता, उन्होंने मुझे सच्चे मार्ग पर टिके रहने की शक्ति दी. वे अशिक्षित थीं, लेकिन मेरी नजर में सच्ची शिक्षा की जीती-जागती मिसाल थीं. 

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