2 अक्टूबर 2025 को महात्मा गांधी की 156वीं जयंती मनाई जा रही है. इस दिन पूरे भारत में उन्हें याद किया जाता है. स्कूलों से लेकर सरकारी ऑफिस तक, लोग उनकी विचारधारा को अपनाने और समझने की कोशिश करते हैं. सत्य और अहिंसा की उनकी सीख आज भी हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महान आत्मा, जिसे आज हम राष्ट्रपिता कहते हैं, उसने अपने बचपन में कभी कोई चोरी की थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि गांधी जी ने अपनी पहली चोरी छोटी उम्र में की थी. ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे. ऐसे में चलिए जानते हैं कि गांधी जी ने किस उम्र में पहली चोरी की थी. 

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गांधी जी की पहली चोरी

गांधी जी ने पहली बार चोरी तब की, जब वे 12 या 13 साल के थे. ये चोरी भी काफी छोटी थी. इस चोरी में गांधी जी ने तांबे के कुछ सिक्के चुराए थे, लेकिन उनके मन में अपराधबोध इतना था कि ये छोटी-सी चोरी उनके लिए बहुत भारी पड़ गई. इस छोटी गलती ने उनके दिल में गहरा असर छोड़ा. उन्हें यह अहसास हुआ कि कोई भी गलत काम अंदर ही अंदर इंसान को तोड़ देता है, चाहे वह बाहर से कुछ भी दिखे.

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वहीं, गांधी जी ने दूसरी चोरी 15 साल की उम्र में की थी. उनके बड़े भाई के पास सोने का बाजूबंद था. भाई पर करीब 25 रुपये का कर्ज था. गांधी जी ने सोचा कि कर्ज चुकाने के लिए उस बाजूबंद से सोना निकाल लिया जाए. इसके लिए गांधी जी ने बाजूबंद से थोड़ा सा सोना काट कर चोरी कर लिया और बेच दिया. साथ ही, कर्ज चुका दिया, लेकिन चोरी करने के बाद उनको अंदर से बेचैनी होने लगी.

गांधी जी ने किसे बताई अपनी चोरी?

गांधी जी का दिल बेचैन रहने लगा. उन्हें समझ में आया कि ये चोरी तो हो गई, लेकिन अब मन की शांति खो गई है. उन्हें अपने पिता से डर नहीं लग रहा था कि वे मारेंगे बल्कि वे इस बात से डर रहे थे कि उनके पिता को दुख होगा. ऐसे में गांधी जी ने अपनी गलती को स्वीकार करने का एक सुंदर तरीका अपनाया. उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिखा. गांधी जी के पिता ने वह पत्र पढ़ा, उनके आंखों से आंसू बहने लगे, उन्होंने एक शब्द नहीं कहा, न कोई डांट, न कोई सजा. उन्होंने चुपचाप पत्र फाड़ दिया. 

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