भारत में चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव है, लेकिन इसके साथ ही ये काफी खर्चीला भी है. हर साल होने वाले उप-चुनावों पर भारी मात्रा में पैसा खर्च होता है. जिसे लेकर अब भारत निर्वाचन आयोग ने एक प्लान तैयार किया है. प्लान के तहत उप-चुनाव साल में सिर्फ दो बार आयोजित किए जाएंगे. इससे न सिर्फ समय और संसाधनों की बचत होगी, बल्कि सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ भी कम होगा. चलिए जानते हैं कि इस फैसले से कितना पैसा बच सकता है और ये कैसे काम करेगा.
क्या है नया नियम?पहले उप-चुनाव अलग-अलग समय पर होते थे जब भी कोई सीट खाली होती थी. लेकिन अब निर्वाचन आयोग ने तय किया है कि उप-चुनाव साल में दो बार, यानी छह-छह महीने के अंतराल पर आयोजित होंगे. इसका मतलब है कि अगर कोई विधानसभा या लोकसभा सीट खाली होती है, तो उसका उप-चुनाव अगले निर्धारित समय पर होगा.
क्यों लिया गया ये फैसला?उप-चुनावों की तारीखों में बार-बार बदलाव और अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से प्रशासनिक और आर्थिक बोझ बढ़ता है. हर उप-चुनाव में मतदान केंद्र स्थापित करने, कर्मचारियों की तैनाती, सुरक्षा व्यवस्था और प्रचार-प्रसार पर लाखों रुपये खर्च होते हैं. निर्वाचन आयोग का मानना है कि साल में दो बार उप-चुनाव कराने से ये खर्चे कम होंगे, क्योंकि एक साथ कई सीटों पर चुनाव कराना ज्यादा किफायती है. साथ ही, बार-बार चुनावी प्रक्रिया से मतदाताओं और प्रशासन को होने वाली परेशानी भी कम होगी.
कितना पैसा बचेगा?चुनाव कराने का खर्च कई चीजों पर निर्भर करता है, जैसे मतदान केंद्रों की संख्या, कर्मचारियों की तैनाती और सुरक्षा बलों की व्यवस्था. साल में दो बार उप-चुनाव होने से ये खर्च 20-30% तक कम हो सकता है. इसका कारण है कि एक साथ कई सीटों पर चुनाव कराने से संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है. बची हुई राशि विकास कार्यों, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में इस्तेमाल की जा सकती है.
क्या होगा फायदा?प्रशासन को बार-बार मतदान की तैयारियों में नहीं उलझना पड़ेगा, जिससे उनका समय और ऊर्जा बचेगी. बार-बार चुनाव कराने की बजाय एक साथ उप-चुनाव होने से सरकारी खर्च कम होगा. बचे हुए पैसे अन्य कामों में इस्तेमाल किये जा सकेंगे. मतदाताओं को बार-बार वोट डालने के लिए मतदान केंद्र नहीं जाना पड़ेगा.
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