भारतीय सेना ने अपने जवानों की ताकत बढ़ाने के लिए बड़ा कदम उठाया है. सेना ने करीब 2,770 करोड़ की लागत से 4.25 लाख CQB कार्बाइन खरीदने का ऑर्डर दिया है. यह हथियार डीआरडीओ के डिजाइन पर तैयार किया गया है और पूरी तरह मेक इन इंडिया पहल के तहत देश में ही बनाए जाएंगे. CQB कार्बाइन के ऑर्डर साथ ही अब इसकी तुलना AK-47 से की जा रही है. ऐसे में अब चलिए आपको बताते हैं कि CQB कार्बाइन, AK-47 से कितनी अलग है...
कैसे खास है CQB कार्बाइन?
CQB कार्बाइन को खासतौर पर उस समय के लिए डिजाइन किया गया है, जब सैनिकों को नजदीकी मुकाबला करना पड़ता है. जैसे आतंकवाद विरोधी अभियान, शहरों या संकरे गलियों में ऑपरेशन के लिए. इसके अलावा CQB कार्बाइन का वजन करीब 3.3 किलो है और इसकी फायरिंग रेंज 200 मीटर तक है. इसमें 30 राउंड की मैगजीन होती है और यह आधुनिक ऑप्टिकल डिवाइस टॉर्च या साइलेंसर जैसे अटैचमेंट के साथ इस्तेमाल की जा सकती है.
AK-47 से कैसे अलग है देसी कार्बाइन?
AK-47 एक असॉल्ट राइफल है, AK-47 में एक बार में 30 गोलियां भरी जा सकती हैं और इसमें से एक सेकेंड में 6 गोलियां निकलती हैं. वहीं AK-47 आमतौर पर 300 मीटर दूरी तक अचूक निशाना लगा सकती है. इसके मुकाबले देसी कार्बाइन हल्की, छोटी और तेज है. इसे नजदीकी फायरिंग के लिए बनाया गया है, जिससे जवान जल्दी निशाना साधकर, तेजी से मूव कर सकें. AK-47 जहां बड़ी फोर्स में नॉर्मल वॉर के लिए काम आती है. वहीं CQB कार्बाइन आतंकवादी या शहरी ऑपरेशन में ज्यादा उपयोगी मानी जाती है.
CQB कार्बाइन को माना जा रहा आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम
भारतीय सेना की इस कार्बाइन को डीआरडीओ की आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट पुणे ने डिजाइन किया है और उत्पादन का काम दो भारतीय कंपनियों को सौंपा गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, इनमें कल्याणी स्ट्रैटेजिक सिस्टम और अडानी ग्रुप की रक्षा कंपनी पीएलआर सिस्टम शामिल है. वहीं अगले साल से इन कार्बाइनों की सप्लाई भी शुरू हो जाएगी. माना जा रहा है कि इस डील से सेना को न सिर्फ अधुनिक हथियार मिलेंगे. बल्कि भारत की रक्षा निर्माण क्षमता भी मजबूत होगी. अब तक कार्बाइन जैसे हथियारों के लिए सेना को विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता था, अब देश में बनी यह CQB कार्बाइन इस जरूर को भी पूरा करेगी. एक्सपर्ट्स के अनुसार, यह कार्बाइन सैनिकों की गति और सटीकता दोनों बढ़ाएगी. हल्का वजन होने की वजह से इसे लंबे ऑपरेशन में आसानी से संभाल जा सकेगा. साथ ही इसका कम रिकॉइल जवानों को तेजी से दोबारा निशाना साधने में मदद करेगा.
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